Saturday, March 14, 2009

“अधिनायकवाद की जय हो”

(संदर्भ डीजीपी को निर्वाचन आयोग द्वारा हटाया जाना )
-तपेश जैन

टी।एन.शेषन देश के ऐसे पहले निर्वाचन आयुक्त थे जिन्होंने चुनाव की पवित्रता बहाल करने की चेष्ठा की और अब विश्वरंजन भारत के ऐसे पहले पुलिस महानिदेशक हैं जिन्होंने निर्वाचन आयोग की दिन-ब-दिन बढ़ रही अतिरिक्त और अनावश्यक अधिकारवादिता को रोकने की चेष्टा की है । विश्वरंजन जैसे देश के भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठतम्, अनुभवी और विचारवान अधिकारी ने जो भी कहा, लिखा उसके परिणाम में भले ही फौरी तौर पर उन्हें चुनाव आचरण संहिता के उल्लंघन करने वाला अधिकारी मानकर लोकसभा चुनाव कार्य से मुक्त करके चुप कराने की कोशिश की गई हो, सच्चाई यही है कि यह प्रकरण वैसा नहीं है जैसा बाहर से दिखाई देता है । इससे जुड़े प्रश्नों से जुझने की कोशिश को सिर्फ़ इसलिए नहीं टाली जा सकता कि ऐसा करना चुनाव आयोग की नज़रों में अवज्ञा होगी । यह भ्रम मात्र है । देश की व्यवस्था पर प्रश्न उभरते हैं तो उसे ढूँढने की कोशिश करने का सभी को अधिकार है । मात्र अफसोस जता कर सच्ची नागरिकता और मनीषा के जीवन्त होने को प्रमाणित नहीं किया जा सकता ।

घटनाक्रम का बारीकी से विश्लेषण करने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि भारतीय निर्वाचन आयोग कितना शक्तिशाली है और उसकी स्वयं की आचरण संहिता कैसी है ? हम सभी जानते हैं कि वह चुनाव को दुष्प्रभावित करने पर लगाम कसने के सारे प्रशासनिक अधिकार प्राप्त हैं जिस पर अमल करना राज्य सरकारों के लिए लाज़िमी है । वह शासकीय अधिकारियों को दलगत, उम्मीदवार केंद्रित निष्ठा प्रदर्शित करने पर चुनाव से अलग कर सकती है, क्योंकि इससे चुनाव की पवित्रता भंग होती है । परन्तु यहाँ मामला ठीक उल्टा है । जिस पुलिस अधिकारी ने निर्वाचन आयोग को छत्तीसगढ़ में संपन्न विधानसभा में नेक सलाह दीं, उसे ही हस्तक्षेप माना गया है । यह चुभने की बात है । घटनाक्रम की सच्चाई यही है कि यह मामला राज्य निर्वाचन आयोग का था जिसमें निर्वाचन आयुक्त श्री आलोक शुक्ला के भीतर की अतिमहत्वाकांक्षा और अतिरिक्त कर्तव्यपरायणता राज्य के जिला पुलिस अधीक्षकों, खासकर नक्सलप्रभावित क्षेत्रों के, को चुनावी सुरक्षा के संबंध में वह सब कराना चाह रहे थे जो अव्यावहारिक और वास्तविक प्रयोजन के विपरीत था । इसमें उनके आईएएस के रूप में आईपीएस से सुपर होने और ऊपर से अधिनायक की जय हो प्रतिदिन प्रार्थना में दोहराने वाले देश के शक्तिसंपन्न (छोटे-मोटे, कर्मचारियों पर ही नहीं, बड़े-बड़े अधिकारियों पर भी गाज़ गिराने तक की ) चुनाव आयोग के राज्य प्रमुख होने का भाव भी हिलकोरें मार रहा था । वैसे हर आईएएस (आईपीएस भी) स्वयं को सबसे अधिक योग्य और गुणवान होने को सिद्ध करने की चेष्ठा करता रहता है । और वास्तव में वह है तो इसमें किसी बुराई भी नहीं । वैसे वास्तविक योग्य तो वही है जिसके प्रदर्शन के लिए उसे नकारात्मकता का सहारा और कुमार्गगामिता की ज़रूरत न पड़े । एक वास्तविकता यह भी है कि आईएएस और आईपीएस दोनों के बीच भी एक दूसरे से अधिक योग्य होने का छद्म भाव बना रहता है । बहरहाल घोर नक्सली समस्या से जुझ रहे बस्तर सहित कई पुलिस अधीक्षक राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री शुक्ला के अप्रयोजनमूलक और व्यक्तिगत भावभूमि पर खड़े होकर दिये जा रहे लगभग तुगलकी आदेशों के खिलाफ कुछ बोल नही पा रहे थे । लगभग असहाय जीव की मुद्रा में । क्योंकि निर्वाचन आयोग के साथ जाने पर भारी जान माल की हानि और घनघोर नक्सलवादी संकट और नहीं जाने पर निर्वाचन आयोग का कलंक । उनके समक्ष मतदान जैसा राष्ट्रीय महत्व के उत्तरदायित्वो को अंजाम देने का दबाब था पर उससे कहीं ज्यादा माओवादियों के आक्रमण से मतदाताओं को सुरक्षित बचा लेने का राष्ट्रीय और नैतिक उत्तरदायित्व का दबाब भी । और ऐसा भी नहीं कि उनके समक्ष राज्य निर्वाचन आयोग के फरमानों के कारण आ रही अड़चनों से निपटने का सरल तरीका नहीं था । बेशक था । और वे वही श्री शुक्ला को बार-बार गुजारिश कर रहे थे । लेकिन बताया जाता है कि वे थे ही मान ही नहीं रहे थे । यही बात उन्होंने अपने विभाग के वरिष्ठतम् अधिकारी श्री विश्वरंजन को बताया । तब उन्होंने राज्य निर्वाचन आयोग तक नक्सल प्रभावित जिलो की अड़चनें और उससे बेहत्तर ढंग से निपटने के प्रकाशमान तरीके और सुरक्षात्मक पहलों की बात पहुँचायी । भीतरी सूत्र बताते हैं - इसे श्री शुक्ला ने हस्तक्षेप जैसा माना । संकट तो देखिये कि उन्हें यह विश्वरंजन जैसे वरिष्ठ और अनुभवी पुलिस अधिकारी का सुझाव प्रतीत नहीं हुआ जो देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मेदार और सफल अधिकारी रहा हो । शायद यहाँ प्रशासनिक मन का अहंकार अधिक महत्वपूर्ण था । भीतरी प्रशासनिक सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि एक बार तो ऐसा भी अवसर आया था जब निर्वाचन आयोग के किसी छायावादी संदर्भ का वास्ता देकर श्री शुक्ला मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक तक को कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों की बैठक नहीं लेने का संकेत भी दे डाले थे । कुल मिलाकर देखें तो बात कुछ भी नहीं थी । किन्तु कहीं ना कहीं राज्य निर्वाचन आयुक्त नहीं बल्कि श्री आलोक शुक्ला के मन में बड़े अधिकारियों की राय-मशविरों को अतिरिक्त आत्महीनता उपज रही थी । और उधऱ प्रदेश के बड़े अधिकारियों, कलेक्टरों सहित पुलिस अधीक्षक अपने ही भीतर के एक अधिकारी के एकाएक अप्रत्याशित व्यवहार से क्षुब्ध और परेशान थे । यह उनकी निजी रुचि, योग्यता का भी मामला हो सकता है और उनके मन में किसी निहितार्थ को फलीभूत करने की कोशिश भी । यदि ऐसा था तो उनकी आशाओं में निकट भविष्य में लोकसभा चुनाव का मौका भी सम्मिलित था । कारण जो भी हो इसी बीच वे राज्य से भारतीय निर्वाचन आयोग में पहुँच गये और इसी बीच भारतीय निर्वाचन आयोग से आदेश जारी हो गया कि अब विश्वरंजन के रहते राज्य मे लोकसभा का चुनाव निर्वाध रुप से नहीं हो सकता अतः राज्य की सरकार किसी और को उनका प्रभार दे ।

बहरहाल इस प्रकरण ने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच मतभिन्नता के साथ ही निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है । वैसे भी आयोग में इससे पूर्व एक अन्य जो वरिष्ठ आयुक्तों के बीच सिर-फुटौवल ने इसकी मर्यादा को भंग किया ही है । चिन्तन का विषय है कि आयोग किस तरीके से बेहत्तर प्रणाली विकसित करे कि चुनाव निष्पक्ष और बिना किसी राजनीतिक मंशा से हो सके ।

राज्य के सभी पुलिस अधिकारी आयोग के निर्णय से उद्वेलित


रायपुर । आईपीएस एसोशियेसन, छत्तीसगढ़ चैप्टर के सभी सदस्यों ने छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक को चुनाव कार्य से हटाने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हुए राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है । ज्ञापन में कहा गया है कि भारतीय चुनाव आयोग अपने पूर्व जारी एवं संबंधित आदेश को प्रजातांत्रिक मूल्यों के संवर्धन में निरस्त करने पर पुनर्विचार करे ।

सौंपे गये ज्ञापन में यह कहा गया है कि यह भारतीय निर्वाचन आयोग सहित सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ राज्य गंभीर नक्सली समस्या से ग्रस्त है। जो प्रजातंत्र को नुकसान पहुँचान के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं । यह सत्य राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया गया है तथा विभिन्न स्तरों पर इस पर सहमति भी व्यक्त की गई है । पुलिस बल नक्सली हिंसा से जुझ रही है, जिसमें अनेक जिंदगी भी हताहत हुए हैं । यह नक्सली आंतक कुछ विशेष अवसरों पर जैसे चुनाव के दरमियान वृहत आकार भी लेता रहा है, जब अनुभवी एवं व्यावसायिक दृष्टि से दक्ष नेतृत्व में ज्यादा सावधानी एवं समर्पण आवश्यकता होती है ऐसी परिस्थितियों में विषय-विशेषज्ञ ही बल को मार्गदर्शन देकर उसकी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग करके अभियानों के दरमियान जान-माल की अधिकतम सुरक्षा दे सकता है । हाल ही के विधानसभा चुनावों के निर्विघ्न संपन्न होने से इस तथ्य की पुष्टि होती है ।

दुर्भाग्य से भारतीय चुनाव आयोग द्वारा राज्य शासन को पुलिस महानिदेशक को असमय हटाने के निर्देश दिया है, जो आश्चर्यजनक है तथा व्यवस्था में हमारे जनविश्वास को बुरी तरह प्रभावित करता है । जो बातें अब तक सामने आयीं है उसके अनुसार पुलिस महानिदेशक ने राज्य में मौजूद स्थिति के मद्देनज़र अपने पुलिस बल की चिन्ता ही व्यक्त ही की है । समाचार पत्र को दिया गया तथाकथित वक्तव्य का संबंध स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव से दूर-दूर तक नहीं है । शब्दों का जो ग़लत अर्थ निकाला गया है उससे यही प्रतीत होता है कि राई के तिल से पहाड़ बनाया गया है । इसके परिणामस्वरूप क़दम उठाया गया है वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को स्थापित नहीं करता । और यह संवैधानिक व्यवस्था में चेक एवं बैलेंस के सिद्धांत के विपरीत ही है । ऐसी स्थिति में उस अधिकारी को जिसने लाखों की संख्या में पुलिस बल को चुनाव आयोग के निर्देशों के अनुसार प्रजातांत्रिक प्रक्रियाओं के पालन तथा निष्पक्ष चुनावों में लगाया है किसी भी तरह से अपने विचार व्यक्त करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो उन्होंने अपने दीर्घ अनुभव एवं व्यावसायिक क्षमता के बल पर व्यक्त किये हैं ।
यहाँ यह समझना आवश्यक है कि पुलिस महानिदेशक केवल एक पद ही नहीं है जो ऐसे अन्य सामान्य कार्यों को करने वालों के समकक्ष हो, जो सुरक्षा बलों को ही कमांड नहीं करता वरन् वह अपने आप में एक संस्था है । पुलिस बल अपने कमांडर को एक आदर्श के रूप में देखता है जिसके निर्देशों पर वह अपनी मर मिटने के लिए भी तैयार रहता है । इस प्रकार की नेतृत्व क्षमता का उपयोग राज्य हित में किया जाना चाहिए ।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सारे पुलिस अधिकारी जिन पर चुनाव कराने की जिम्मेदारी होती है वे भी चुनाव की अधिसूचना जारी किये जाने पर ही चुनाव आयोग में प्रतिनियुक्त मान लिये जाते हैं । चुनाव आयोग के द्वारा नियंत्रण, अधीक्षण और अनुशासन के नियंत्रण हेतु प्रदत्त अधिकारों का उपयोग प्रजात्रांतिक एवं ज्यादा पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए । माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के तारतम्य मे किसी पुलिस अधिकारी की पदस्थापना कम से कम दो वर्ष की अवधि तक रखने संबंधी पुलिस एक्ट में किये गये प्रावधान का भी यहाँ उल्लंघन हुआ है । राज्य के प्रशासनिक कार्यों के संबंध में कार्य करते हुए आयोग के निर्णय अधिक प्रजातांत्रिक एवं पारदर्शी होने की अपेक्षा की जाती है तथा पुलिस बल के मनोबल को विपरीत रूप से प्रभावित करने वाले प्रकरणो में उचित रूप से निर्णय लिया जाना अपेक्षित होता है ।

इस प्रकार नक्सल प्रभावित राज्य में संसदीय चुनाव की संवेदनशीलता को देखते हुए चुनाव आयोग द्वारा पुलिस महानिदेशक को हटाने संबंधी दिया गया आदेश छत्तीसगढ़ के पुलिस बल के लिए निश्चय ही घातक है । छत्तीसगढ़ पुलिस अत्यंत गंभीर एवं विपरीत परिस्थितियो मे अपना कर्तव्य निभाती है अतः आयोग का यह निर्णय ऐसे समय में बल के मनोबल और निष्ठा को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा । इसलिए आईपीएस एसोशियेसन, छत्तीसगढ़ चैप्टर के सदस्य भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदेश से उद्वेलित हैं तथा आयोग से इस निर्णय पर सही रूप से पुनर्विचार हेतु अनुरोध करते हैं ।
आईपीएस एसोशियेसन, छत्तीसगढ़ चैप्टर के सभी सदस्यों ने छत्तीसगढ़ के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को इस संबंध में ज्ञापन सौंपा है ताकि वे उनकी भावनाओं को भारतीय निर्वाचन आयोग और संबंधित संस्था तक पहुँचा सकें ।

मुख्यमंत्री और महामहिम को ज्ञापन सौपने में जो अधिकारी मुख्य रूप से उपस्थित थे उनमें, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रामनिवास, आईजी त्रय डी.एम.अवस्थी, ए.के.तिवारी, व आर.के.विज, डीआईजी पवनदेव, अरुणदेव गौतम, हिमांशु गुप्ता सहित बड़ी संख्या में भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी महत्वपूर्ण हैं ।

Saturday, February 7, 2009

शर्मा, कर्मा, बघेल साहू लड़ेंगे लोस चुनाव


रायपुर। विधानसभा चुनाव में पराजित कांग्रेस के कद्दावर नेता निराश नहीं हुए है। सभी नेताओं के सामने तीन माह बाद फरवरी में संभावित लोकसभा चुनाव ने अवसर प्रदान किया है कि वे अपने माथे पर लगे शिकस्त के दाग को धोकर जीत का तिलक लगा सके। नेता प्रतिपक्ष महेंन्द्र कर्मा उपनेता भूपेश बघेल, प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू और कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा की अब ये रणनीति है कि पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में इन्हें फिर अवसर प्रदान करें ताकि वे साबित कर सके कि उन्हें भी चुनाव जीतना आता है। कांग्रेस के अपराजित योद्धा सत्यनारायण शर्मा अब तक लगातार पांच बार विधानसभा का चुनाव् जीत चुके है। और परिसीमन के चलते उनकी मंदिर हसौद सीट के विलोपित होने से उन्हें रायपुर ग्रामीण से चुनाव लडऩा पड़ा जहां वे दो हजार वोटों से पराजित हो गए। इस हार के बाद भी उन्होंने सक्रिय राजनीति से मुंह नहीं मोड़ा है और सार्वजनिक जीवन की व्यवस्था बनाए हुए है। उनके नजदीकीयों के मुताबिक श्री शर्मा लोकसभा चुनाव में फिर से किस्मत अजमा सकते है और चुनाव में कोई गलती नहीं क रेगें। इसी तरह अपराजित विजेता भूपेश बघेल को चौंका मारने का भले ही अवसर नहीं मिला

डॉ. रमन की ईमानदार छवि से मिली जीत



भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम से अपनी अलग तरह की छवि बना चुके चर्चित पूर्व मंत्री और रामपुर विधानसभा से पांचवी बार निर्वाचित विधायक ननकीराम कंवर भारतीय जनता पार्टी को पुन: सरकार बनने की वजह मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की ईमानदार छवि को बताते हैं। साफगोई के लिए प्रसिद्ध श्री कंवर नयी पारी के लिए तैयार है और जो भी जवाबदारी पार्टी देगी उसका वे निर्वाहन करेगें।
रायपुर कोरबा जिले की चार विधानसभा सीटों में से मात्र एक क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी की विजय से यह साबित हो गया कि ननकीराम कंवर जननेता है और विपरीत परिस्थितियों में भी वे इलेक्शन जीत सकते हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री प्यारेलाल कंवर को लगातार तीसरी बार पराजित करने वाले श्री कंवर डॉ। रमन सिंह मंत्रीमंडल में शामिल थे लेकिन कई मामलों में वे चर्चित रहे और खाद्य विभाग में छापामार कार्रवाई से हडक़म्प मच गया था और इसके चलते उन्हें मंत्री पद भी खोना पड़ा था। इसके बाद भी वे पार्टी लाइन से नहीं हटे और किसी तरह की बगावत नहीं की।

इस चुनाव में उन्हें टिकट मुश्किल से मिली लेकिन उनकी जीत से यह साफ हो गया है कि वे जननेता है। प्रदेश में भाजपा की सत्ता में पुन: वापसी के कारणों का विश्लेषण करते हुए डॉ। रमन सिंह विकास के लिए समर्पित व्यक्ति है और सही बहुत लाभ मिला है। डॉ. रमन ंिसंह विकास के लिए समर्पित व्यक्ति है और सही अर्थो से देखा जाए तो दानी आदमी में है। उन्होंने प्रदेश की जनता के कल्याण के लिए ऐसी योजना लांच की जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था। गरीबों को तीन रूपए किलो में 35 किलो चांवल देने के साथ ही किसानों का संपूर्ण ध्यान खरीदने की व्यवस्था ने एक अलग इमेज बनाई। वनवासियों को चरण पाहुका औत तेंदुपत्ता बोनस में जर्बदस्त बढ़ोतरी के साथ ही आदिवासियों को बैल-जोड़ी और पच्चीस पैसे किलो में नमक देने की योजनाएं अभूतपूर्व थी। श्री कंवर ने कहा कि सत्तापक्ष के सामने निगेटिव वोटों की सबसे बड़ी चुनौती होती है जिसे डॉ. रमन ंिसंह ने पार किया और कभी सुंदरलाल परवा और वीरेन्द्र कुमार स्वरखलेचा मंत्रिमंडल में रह चुके श्री कंवर बताते है कि उन्होने कभी भी भ्रष्टाचार को प्रश्रय नहीं दिया और हमेशा इसके खिलाफ मुहिम चलाते रहे। जिसकी वजह से उनके विभाग बदलते रहे। डा. रमन सिंह के केबीनेट में भी उनके विभाग में परिवर्तन होते रहे है। पहले राजस्व विभाग मिला फिर वन फिर कृ षि और अंत में खाद्य विभाग की जिम्मेदारी का अनुभव उन्हें है। तो वे चुनौतियों का सामना भी करते है। खाद्य मंत्री के रहते हुए उन्होंने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरस्त करने कड़े कदम उठाए। पीडीएस से ही सरकार की छवि बनती बिगड़ती है सो उनकी कार्यप्रणाली से ये संदेश गया कि डा. रमन सिंह सरकार का कामकाज अच्छा है।

तीन रूपए किलो चावल योजना की सफलता में इस विभाग की बड़ी भूमिका है। आगामी पांच साल की योजना के संदर्भ में पुछे गए सवाल के जवाब में श्री कंवर ने कहा कि इस बार डा. रमनसिंह सहित सभी मंत्रियों को अच्छा अनुभव मिल गया है और सबका विजन स्पष्टï है। इसलिए विकास को दुगूनी गति मिलेगी और छत्तीसगढ़ अपने स्वर्णिम इतिहास को लिखेगा। घोषणापत्र की सभी योजनाएं लागू की जाएगी और किसी तरह संसाधन की कमी नहीं होगी। मुख्यमंत्री घोषणापत्र की कल्याणकारी योजनाओं से बढक़र कार्य करेंगे। जिस तरह उन्होंने तीन रूपए किलो चावल की योजना लागू की । इसलिए घोषणापत्र कोई चुनौती नहीं है बल्कि लक्ष्य है जिसे आसानी से हासिल कर लिया जाएगा।

पत्र शत् प्रतिशत अमल

चार बार विधायक और चार बार सांसद का चुनाव जीतकर रिकॉर्ड कायम करने वाले बिलासपुर के सांसद एवं मोहिले विधानसभा से नव निर्वाचित विधायक पुन्नालाल मोहिले भारतीय जनता पार्टी में सतनामी समाज के बड़े नेता है। इस वर्ग का प्रतिनिधित्व होने के कारण उनका मंत्रिमंडल में स्थान लगभग तय है। श्री मोहिले ने गुरू घासीदास बाबा की जन्म स्थली के और ज्यादा विकास का भरोसा दिलाते हुए कहा कि घोषणा-पत्र पूरी तरह अमल किया जायेगी।

रायपुर डॉ। रमन सिंह की सरकार अपने घोषणा पत्र पर शत प्रतिशत अमल करेगी। इतना ही नहीं गुरू घासीदास बाबा की जन्म स्थली गिरीदपुरी में कुतुबमीनार से ऊँचा जैतखम के निर्माण के साथ ही विकास के बहुत से कार्य किए जायेगा। यह उद्गार अनूसूचित जाति के लिए आरक्षित मुंगेली सीट से नवनिर्वाचित विधायक पुन्नालाल मोहिले ने व्यक्त करते हुए काह कि बीते पांच साल में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जो विकास कार्य किया उसका प्रतिफल ही इस चुनाव में मिला है। लोकसभा कीे सदस्यरता से इस्तीफा देने नई दिल्ली रवाना होने से पूर्व श्री मोहिले ने कहा कि इस बार बीजेपी को दलित वर्ग का भी अच्छा समर्थन मिला है और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगी है। भारतीय जनता पार्टी की दुबारा प्रदेश में सरकार बनने के सवाल पर श्री मोहिले ने कहा कि डॉ. रमन सिंह ने अच्छा काम किया और लोगों मेंं भारी उत्साह था। गरीबों को तीन रूपए किलो में चावल देने की योजना के साथ ही पुल पुलिया का निर्माण, तालाब गहरीकरण गौठान निर्माण की योजना, कर्मचारियों को छठवां वेतनमान देने के अलावा विकास के अनगिनत कार्यो से जनता का अच्छा समर्थन मिला। अगले पांच साल की कार्य योजना के प्रश्न पर श्री मोहिले ने जवाब दिया। कि घोषणा -पत्र पर पूरी तरह अमल किया जायेगा। किसानों को धान बेचने पर 270 रूपए बोनस देने के अलावा मुफ्त में बिजली ब्याजमुक्त ऋण के अलावा गरीबी उन्मुलन के लिये योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू की जायेगी।

श्री मोहिले ने कहा कि अब कांग्रेस से दलित वर्ग का मोह भंग होने लगा है। इस बार सुरक्षित सीटों में फिफ्टी-फिफ्टी सीटे मिली है जो इस बात का परिचायक है। एक बीजेपी ने कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में पूरी तरह सेंध लगा दी है। गुरू घासीदास बाबा की जन्म स्थली गिरोदपुरी में करोड़ों रुपए के विकास कार्य हुए है। कुतुबमीनार से ऊंचा जैतखम निर्माणधीन है। अनुसूचित जाति के क्षेत्रों में सी-सी रोड, एकलुबत्ती कनेक्शन गरीबी उन्मूलन की योजनाओं का लाभ मिला है। इन कार्यो से डॉ। रमन ंिसंह की लोकप्रियता बढ़ी है। समाज के हर वर्ग के लिए डॉ. रमन सिंह ने काम किया है। इसके साथ ही उन्होंने बढ़ते हुए जादिवाद की भावना पर अंकुश लगाया जातिवाद की भावना पर अंकुश लगाया है तो नक्सलवाद के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन सलवा जुडुम को समर्थन देकर बस्तर में शांति स्थापित करने का काम किया है।

डॉ. रमन सिंह के मंत्रिमंडल में स्थान मिलने के सवाल पर श्री मोहिले ने कहा कि मंत्रीमंडल का गठन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और पूरी तरह उन्ही पर निर्भर है। स्थान मिले या नहीं लेकिन वे अपना कार्य जिम्मेदारी से करेगें और प्रदेश के विकास में भागीदार निभायेगें।

भाजपा ने वनवास का मिथक तोड़ा:सुभाष राव


रायपुर । भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सफलतापूर्वक पूरे पांच साल राज करने के बाद दुबारा सत्ता हासिल कर यह मिथक तोड़ दिया है और वह अब विकास के नए आयाम स्थापित कर जनतंत्र में अपनी मजबूत और महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। ये उदगार छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल के प्रथम अध्यक्ष सुभाष राव ने व्यक्त करते हुए विकास की योजनाएं लागू कर छत्तीसगढ़ में इतिहास रचा है। गरीब व्यक्ति के पेट की चिंता को दूर कर जो पुण्य अर्जित किया उसका प्रतिफल पुन: कार्य करने का अवसर मिला है। सवालों का जवाब देते हुए श्री राव ने कहा कि तीन कारणों से भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश में जनता को पुन: बहुमत के पायदान पर पहुंचाया है। सबसे अहम कारण यह था कि भाजपा सरकार की सोच काम करने की थी जिसके आधार पर मुख्यमंत्री ने गाँव-गरीबों किसान मजदूर के लिए विभिन्न तरह की विकास योजनाएं बनाई। व्यक्ति हितों 35 किलो चांवल प्रति माह देने के साथ ही किसानों को मिलने वाले ऋण में ब्याज की दर को तीन प्रतिशत तक घटाना है। देश में यह सबसे कम दर है। कभी यह 14 प्रतिशत थी जिसे नौ, फिर सात और उसके बाद छ: और तीन प्रतिशत किया गया है। हमारा संकल्प है कि इसे हम शुन्य प्रतिशत कर देंगे। किसानों को ब्याज मुक्त ऋण देने वाला छत्तीसगढ़ में पहला राज्य होगा। भाजपा सरकार ने किसानों का संपूर्ण धान खरीदने के साथ ही फसल बीमा और पांच हार्स पावर तक बिजली रियायती दर पर उपलब्ध करवाकर किसानों की हितैषी सरकार बन चुकी है। आगामी पांच सालों में किसानों को मुफ्त बिजली देने की योजना है। भाजपा सरकार को वापसी का दूसरा बड़ा कारण आतंक और भय से मुक्त शासन रहा है। लोगों ने छत्तीसगढ़ राज्य निमार्ण के बाद ऐसी सरकार देखी है। जिससे किसान, छात्र, और व्यपारीयों पर लाठीचार्ज कर विरोधियों को प्रताडि़त किया। बहुमत होने के बाद भी विपक्षी दल के जनप्रतिनिधियों के खरीद-फरोख्त की राजनीति को देखा तो मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह के कार्यकाल में विपक्ष को सम्मान के साथ ही आम आदमी को उसके अधिकार के साथ ही आजादी मिली। भयमुक्त शासन ने सदभावना का वातावरण प्रदेश में देखा।

तीसरा कारण यह है कि केन्द्र की सरकार में आसमान छूती महंगाई और आतंकवाद की बढ़ती घटनाएं। पिछले पांच साल से सुरक्षा की तरह की चीजों के दाम बढ़ गए हैं तो आर्थिक नीतियों के चलते उद्योग धंधों को मंदी की मार झेलनी पड़ रही है निराशा के ऐसे वातावरण में भाजपा ने उम्मीदों का कमल खिलाया है और लोगों को लगता है कि ये पार्टी स्थिरता के साथ विकास के लिए प्रतिबद्ध है।

भाजपा में अपनी वैचारिक सोच के लिए थिंक टैंक माने जाने वाली श्री राव के विचार है कि भारतीय लोकतंत्र की जड़ें बेहद मजबूत है और शिक्षित मतदाताओं की तरह अशिक्षित मतदाता थी विवेक के साथ वोट डालते समय वैचारिक प्रतिबद्धता की जगह अब विकास और काम को महत्व देता है। इसलिए आदिवासी क्षेत्रों में जो कभी कांग्रेस के गढ़ रहे हैं वहां के लोग अब प्रत्याशी पार्टी और कार्य का मूल्यांकन कर वोट देते हैं जो अलग तरह का आधार पुख्ता हुआ है। पहले सरकारें निगेटिव वोटों के चलते बनती रही है अब पाजिटिव वोटों से भी बन सकती है यह बात उभरकर सामने आई है। सत्ता में पुन: वापसी के बाद बढ़ी हुई जिम्मेदारियों के प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर जवाबदेही बढ़ी है। पार्टी को पहले पांच साल आधारभूत संरचना के निर्माण में लग गए अब प्रयास में होगा कि निचले स्तर तक लोगों को लाभ पहुंचे। छत्तीसगढ़ नैसर्गिक अनुकूलताओं से युक्त समृद्ध राज्य है। संभावना की दृष्टिï से यहां खनिज, जल, वन श्रम सभी संसाधन भरपूर मात्रा में है जो इसे समृद्ध राज्य की कतार में लाकर खड़ा कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर और प्रगतिशील राज्य बन सके इन संभावनाओं को मूर्त रूप देना है। ऊर्जा के क्षेत्र में नंबर वन है तो स्टील, सीमेंट, लाइमस्टोन वन संपदा में अग्रणी राज्य है। कृषि के क्षेत्र में धान का कटोरा कहा जाता है सारे संसाधनों के उचित दोहन के साथ वैल्यू एडीशन करना होगा। अभी यहां से रा मटेरियल बाहर जाते हैं हमें इसकी जगह फीनिश्ड गुड को बाहर भेजना होगा। इस प्रक्रिया से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी और राज्य को इंकम भी बढ़ेगी। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा सरकार इन सब बातों को अमलीजामा पहनाएगी इसका पूरा विश्वास है। बस्तर के जगदलपुर जिले के निवासी श्री राव आदिवासी अंचल की राजनीति में वैचारिक अंचल की राजनीति में वैचारिक चिंतन के लिए पहचाने जाते हैं। बस्तर की 12 में से 11 सीटों पर ऐतिहासिक जीत के सवाल पर उन्होंने जवाब दिया कि बस्तर की नक्सली समस्या का सबसे बड़ा कारण आर्थिक और सामाजिक विषमता है और इसके लिए कांग्रेस पूरी तरह दोषी है जिसने पचास सालों तक एक छत्र राज्य किया। इस समस्या से स्वयं आदिवासी निजात चाहते हैं और उन्होंने स्व:स्फूर्त सलवा जुडूम आंदोलन के बाद बैलेट के माध्यम से यह बता दिया कि भाजपा सरकार के शांति प्रयासों को वे आगे बढ़ाना चाहते हैं। नक्सलियों के भय से निर्वासित जीवन जीने को मजबूर आदिवासी अपनी संस्कृति और परंपरा में लौटना चाहता है। राहत शिविर को छोडक़र स्वच्छंदता से खेती और वनोपज संग्रहण कर अपनी जीविका का उपार्जन करने वाले आदिवासियों ने जनतांत्रिक व्यवस्था में मोहर लगाई है। इससे निश्चित ही आदिवासियों को जवाब मिल गया होगा। छत्तीसगढ़ में जातिवाद की बढ़ती भावनाओं के संदर्भ में पूछे गए सवाल के जवाब में श्री राव ने गंभीरता के साथ कहा कि सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाकर ऐसा वातावरण बना होगा जिससे स्थानीय लोग प्रतिस्पर्धा में आगे आ सके। समाज के पिछड़े वर्ग में अगर अवसरों में पिछडऩे की हीनभावना बढ़ गई तो वो अराजक स्थितियां उत्पन्न हो सकती है जरूरत इस बात की है कि शिक्षा का प्रसार हो और सभी वर्गों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की जगह प्रतिद्वंद्विता की भावना तक बलवती होती है। जब असमानता हो। अत: सभी को समान रूप से बेहतर शिक्षा मिले ये बेहद जरूरी है । उन्हें अगर अवसर मिला तो वे इस दिशा में कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे।

कर दिखाया डा. रमन ने करिश्मा



रायपुर। भारतीय जनता पार्टी लगातार यह मिथक तोड़ रही है कि वो एक बार सत्ता में आने के बाद दुबारा नहीं आती। गुजरात में नरेंद्र मोदी के बाद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की वापसी से ये टोटका टूट गया। मध्यप्रदेश को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ में सिंहासन छत्तीसी की विजय के लिए अगर कोई हकदार है तो वे एकमात्र नेता मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ही है जिन्होंने पहले पांच साल का कार्यकाल पूरा कर भाजपा में तो रिकार्ड बनाया वहीं पार्टी के तमाम बड़े नेताओं की खिलाफत के बीच बहुमत का जादुई आंकड़ा प्रापत कर करिश्मा कर दिखाया। इस जर्बदस्त सफलता के पीछे उनके गरीबों को तीन रूपये किलो चावल देने की खाद्यन्न सहायता योजना से ज्यादा उनकी व्यक्तिगत सर सौम्य नेता की छवि के साथ ही आदिवासी अंचल बस्तर सरगुजा में विकास कार्य भी है जहां पार्टी के अभूतपूर्व सफलता मिली है। डॅा. रमन सिंह अकेले ऐसे नेता है जिन्होंने बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ आदिवासियों के स्वस्फूर्त आंदोलन सलवा जुडूम का साहस के साथ समर्थन किया। बाकी उनके सहयोगियों में भारी भय रहता था की कहीं उनके ज्यादा बोलने से नक्सलवादी उन्हें अपना शिकार न बना लें। ऐसे समय में मुख्यमंत्री का डटकर सामना करने से एक अलग ही छवि जनता के बीच बनी। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के प्रभारी भाजपा के वरिष्ठï नेता रविशंकर प्रसाद का यह कहना बहुत मायने रखता है कि सन 2003 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सात प्रतिशत वोट जो इस चुनाव में कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे उसे और एंटी इनकाम्बेंसी के वोटों से जूझकर पुन: सत्ता प्राप्त करना अभूतपूर्व है और इसे डा. रमन सिंह ने कर दिखाया है और वे सम्मान के योग्य हैं। इस विश्लेषण से जो लोग इत्तेफाक नहीं रखते हो उनके लिए बहुत से तथ्य हैं जो ये साबित कर सकते हैं कि डा. सिंह के नेतृत्व ने कांग्रेस के गढ़ छत्तीसगढ़ में पूरी तरह सेंधमारी कर दी है। इस बात से अलग सब इत्तेफाक रखते हैं कि आदिवासी अंचल बस्तर और सरगुजा जिस पार्टी का साथ दे देता है उसकी प्रदेश में सरकार बन जाती है इस बार भी बस्तर और सरगुजा ने कमल पर बटन दबाया है। बस्तर की 12 में से 11 सीट जीतर भाजपा ने नया रिकार्ड कायम किया है तो सरगुजा अंचल की कोरिया, अंबिकापुर और जशपुर जिले की 14 में से 9 सीटों पर औ्र विशेषकर कोरिया जिले की तीनों सीटों पर कब्जा कर भाजपा ने इतिहास ही रच दिया है। अब बात करें कि इन क्षेत्रों में किन कारणों से पार्टी को इतनी सफलता मिली है तो कई बातों पर गौर करना होगा। बस्तर में जहां सलवा जुडूम का समर्थन ने आदिवासी मन को मोहा तो वहीं बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण के तहत किए गए विकास कार्यों ने भी पार्टी के प्रति वफादारी का भाव जागृत किया। यहां बता दें कि आजादी के बाद से ही दोनों क्षेत्र उपेक्षित है और मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने इन दोनों अंचल में स्वयं रूचि लेकर विकास कार्यों को अमलीजामा पहनाया। बस्तर और सरगुजा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद का दायित्व निभाते हुए डा. सिंह ने जो काम किए है उसका ही प्रतिफल इस चुनाव में मिला है।
याद दिलाने वाली बात यह भी है कि इन दोनों क्षेत्रों के क्षत्रप सांसद नंदकुमार साय और बलीराम कश्यप ने इस बार चुनाव में कोई सक्रिय भूमिका अदा नहीं की बल्कि नाराजगी के चलते खामोशी अख्तियार कर ली थी। बस्तर टाइगर बलिदादा ने तो लता उसेंडी की हार पहले से ही घोषित कर पार्टी का मनोबल तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन वे जीती और पार्टी ने भी ऐतिहासिक विजय हासिल की। वहीं सरगुजा अंचल की राजनीति में अव्वल नेता नंदकुमार साय की चुप्पी के बाद भी डा. सिंह ने नेतृत्व कर पूरा उत्साह पार्टी में बनाए रखा। डा. रमन सिंह इस चुनाव में पूरी तरह अकेले पड़ गए थे। सांसद बलीराम कश्यप, नंदकुमार साय के अलावा रमेश बैस भी सुस्त रहे तो ताराचंद साहू, शिवप्रताप सिंह और गहिरा गुरू के पुत्र संस्कृत बोर्ड के अध्यक्ष चिंतामणि महाराज की बगावत के अलावा 17 सीटिंग विधायकों की अप्रत्यक्ष नाराजगी के बीच चुनाव का नेतृत्व करना टेढ़ी खीर ही था। फिर एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा की कहावत को चरितार्थ करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के जोरदार हमलों का सामना करने में अच्छे-अच्छे का पसीना निकल जाए सो डा. रमन सिंह को खासी मेहनत करनी पड़ी है अपनी सल्तनत बचाने के लिए। इसलिए डा. रमन की जीत करिश्मे से कम नहीं है और उनमें संघर्ष कर जीत हासिल करने का जज्बा पैदा हो गया है और इसे ही करिश्माई नेता कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

जीत के असली हीरो हैं डॉ रमन सिंह


अगर कवर्धा के विकास के लिए मैंने एक भी काम किया है तो इस बार जरूर भारतीय जनता पार्टी को जिताना नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा। ये उद्गार मुख्यमंत्री डॅा रमन सिंह के है जो उन्होंने हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान अपने गृह क्षेत्र कवर्धा में व्यक्त किये थे। इस क्षेत्र के विजय हुए प्रत्याशी डॉ. सियाराम साहू बताते हैं कि यह बोलते हुए डॉ. सिंह बेहद भावुक हो गए और ऐसा लगता है कि वे रो पड़ेंगे। कवर्धा शहर ने इस बार मुख्यमंत्री की लाज रखी और बीजेपी को यहाँ से 1700 से भी ज्यादा वोटों की लीड मिली। डॉ. साहू बताते हैं कि इस बार कार्यकर्ताओं ने यह चुनाव डॉ. रमन सिंह के नाम पर लड़ा और प्रतिष्ठïा को बचाने के लिए तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया जो कि अभूतपूर्व था। दूसरी बार विधानसभा का सदस्य चुने जाने के बाद डॉ. साहू कवर्धा को पूरे छत्तीसगढ़ में अलग पहचान दिलाने का संकल्प ले चुके है। और वे इस बार क्षेत्र के लिए बहोत कुछ करना चाहतें है।
मिनीवार्ता से विशेष बातचीत करते हुए पूरे प्रदेश के भाजपा प्रत्याशियों में सर्वाधिक मत प्राप्त 78,817 और 10,878 वोटो से विजेता कवर्धा के विधायक डॉ. सियाराम साहू ने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि प्रदेश में दोबारा सरकार बनाने की एक ही वजह है और वो है घोषणापत्र से बढक़र प्रदेश का चहुंमुखी विकास। डॉ. रमन सिंह ने गाँव-गरीब और महिला हर वर्ग के लिए कल्याणकारी योजनाए लागू की। हर क्षेत्र में योजनाए बनी। गरीबों को तीन रुपए किलो चावल, 25 पैसे में नमक, किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर ऋ ण, पाँच हार्स पावर तक मुफ्त बिजली, आठवीं तक मुफ्त किताबों के अलावा वृह एवं निराश्रितों के लिए 300 रू. पेंशन, विकलांगो के लिए 200 रू. पेंशन, महिलाओं को पंचायत में पचास प्रतिशत आरक्षण स्व सहायता समूह के तहत आठ लाख महिलाओं को आर्थिक सहायता, बालिकाओं के लिए सरस्वती साईकिल योजना, 17,000 हजार सामूहिक विवाह के माध्यम से कन्यादान एवं आर्थिक सहायता। मुख्यमंत्री स्वालम्बन योजना के तहत नौजवानों के लिए दुकानों का निर्माण, जीवन से लेकर मरण तक के लिए मुक्तिधाम का निर्माण और बडी बात हमर छत्तीसगढ़ योजना े्के तहत धार्मिक एवं पर्यटन स्थलों के जीर्णोंद्वार और सौन्दर्यीकरण के लिए राशि प्रदान करना। डॉ. साहू आगे बताते हैं कि डॉ. रमन सिंह ने हर वर्ग के लिए कुछ न कु छ किया। वो केवल ऊपर ही नहीं निचले स्तर के लोगों का ध्यान रखते थे। आई.ए.एस.अफसर से लेकर कोटवार तक का उन्होनें ख्याल रखा है। 25,000 कोटवारों को दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी से प्रमोट कर नियमितिकरण करने के साथ ही डै्रस, जूता और टार्च प्रदान कर उनका दिल जीत लिया। इतना ही नहीं पहले जो पंचायत सचिव पांच सौ रुपए प्रतिमाह मानदेय प्राप्त करते थे वे अब पांच हजार पाने लगे हैं। शिक्षाकर्मियों की भर्ती के साथ ही उनके लिए बहुत कुछ किया है। डा. रमन सिंह ने हीरों की तरह काम किया है और वे दिलों को जीतना जानते हैं। इसलिए किसी भी बच्चे को अगर दिल की बीमारी है तो उसके इलाज के लिए खजाना पूरी तरह खुला है। डा. साहू बताते हैं कि बैगा आदिवासियों के उत्थान के लिए डा. रमन सिंह ने बहुत कुछ किया है। जमीन का पट्टïा देने के अलावा मकान निर्माण के लिए 34000 रुपए की सहायता के अलावा बहुत सी योजनाएं थी। अगले पांच साल की कार्ययोजना के संदर्भ में वे बताते हैं कि कवर्धा नगर पालिका को नगर निगम का दर्जा दिलाने के अलावा वे इस जिले का नाम पूरे छत्तीसगढ़ में हो इसके लिए महत्वाकांक्षी योजना पर विचार कर रहे हैं। अगले पांच साल के लिए घोषणा पत्र से आगे जाकर डा. रमन सिंह बेहतर कार्य करेंगे इसका उन्हें पूरा विश्वास है।

प्रदूषण से हानि, पर्यावरण संरक्षण से लाभ बताना होगा


40,000 करोड़ रुपए हम हर साल बीमारियों पर खर्च कर रहे हैं। यकीनन रोग बिगड़ते हुए पर्यावरण से उत्पन्न हो रहे हैं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू देखें, दूषित वायु से हर वषज्ञ 56,000 से ज्यादा लोग अकाल मौत मारे जा रहे हैं। जहर अंश युक्त खाद्य पदार्थ से 20,000 मृत्यु हर साल भारत में होती है। ये कुछ आंकड़़े दो-तीन वर्ष पुराने हैं यानी वर्तमान में इससे ज्यादा चिंताजनक स्थितियां हैं। जहरीली हवा, पानी, मिट्टïी और खाद्य पदार्थ से नई-नई बीमारियां पनप रही हैं। अब तक हमने मलेरिया का नाम सुना था लेकिन मलेरिया का ही भयानक प्रतिबिंब डेंगू का प्रादूर्भाव हो चुका है। हेपेटाइटिस बी, सी डी, गेस्टो-इन्टाट्रिक्स, ब्रोकांटिस जैसी नई-नई बीमारियां चलन में है। एलर्जी, पेट की बीमारी, श्वांस रोग, घातक स्तर तक पहुंच गये हैं। इस संदर्भ में रायपुर शहर के पर्यावरण और रोग को देखें तो शहर में यकायक चिकित्सकों की संख्या आशचर्यजनक ढंग से बढ़ी है। करीब 540 निजी एलोपैथिक चिकित्सक और इससे दुगने होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व आर.एम.पी. डाक्टरों की संख्या से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस कदर शहरवासी बीमारी हैं। बावजूद इसके हम नियति मानकर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। दोष औसत आदमी का नहीं, सरकारी एजेंसियों का है। जिन्होंने पर्यावरण पर हल्ला तो मचाया पर आम आदमी को ढंग से नहीं बताया कि प्रदूषण क्या है? उसकी रोकथाम करना क्यों जरुरी है? साथ ही पर्यावरण के मुद्दे पर चिंता जताना फैशन बन गया है और इस पर बातचीत करना स्टेटस सिंबल। दुर्भाग्य यह रहा कि कथित पर्यावरण जानकारों ने स्टेटस बनाए रखने के लिए आम आदमी को कभी ढंग से बताया नहीं कि पर्यावरण और प्रदूषण क्या है? हालांकि वे जनभागीदारी का ढिंढोरा पीटते रहे। इसलिए जो थोड़े बहुत उपाय हुए वह आंशिक सफल रहे। शहर में वृक्षारोपण की योजनाबद्ध शुरुआत हार्टिकल्चर सोसायटी ने की और बाद में पर्यावरण कोष, पूर्व संभागायुक्त जे.एल. बोस व जिलाधीश डी.पी. तिवारी की जुगल-जोड़ी ने बनाया लेकिन दोनों संस्थाओं के वृक्षारोपण शत-प्रतिशत सफल रहे हो, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन तीन आदमियों ने पचपेढ़ी नाका से लेकर कालीबाड़ी चौक तक 106 वृक्षों का शत-प्रतिशत रोपण किया। भूपेंदर सिंह पिन्नी, किरोड़ीमल अग्रवाल और प्रशांत पारख ने तीन साल पहले टिकरापारा मुख्य मार्ग में तालाब के सामने सौ वृक्ष रोपित किए उनमें से एख भी वृक्ष मरा नहीं। कुल 206 वृक्षों की सफलता आम आदमियों का ही प्रयास है। इन दोनों संस्थाओं ने आम-आदमी को कभी भी वृक्षारोपण के लाभ नहीं बताएं, शायद इसीलिए जनता इनसे जुड़ी भी नहीं। दरअसल बिगड़ता हुआ पर्यावरण मानव जाति के समक्ष घोर संकट पैदा कर रहा है, अत: उसे संवारना सबका नैतिक दायित्व बन जाता है। पर्यावरण कुछ संगठनों और सरकार के भरोसे सुधर भी नहीं सकता, जब तक प्रत्येक नागरिक भी इसमें भागादीर नहीं होगी सुधार के कोई भी उपाय सफल नहीं हो सकते। आम आदमी को पर्यावरण, प्रदूषण की जानकारी के साथ ही उनके स्वास्थ्य में होने वाले नुकसान व प्राकृतिक संसाधनों की कमी के खतरों से अवगत करवाने लोकमान्य सदभावना समिति ने यह प्रयास किया है। इसके लिए हमें गांधी शांति प्रतिष्ठान के पर्यावरण कक्ष और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के राष्टï्रीय पर्यावरण जागरुकता अभियान से प्रेरणा मिली। इस आयोजन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के उप संचालक हीरामन सिंह ठाकुर व जनसंपर्क विभाग के उपसंचालक सुभाष मिश्रा ने सहयोग प्रदान कर हौसला बढ़ाया, इन सबके प्रति आभार।

रमन सिंह कोईतोर ना पेन लेहका माने आंदूर


रायपुर। गोंड़ी भाषा में जब अंतागढ़ के आदिवासी ये कहतें है कि रमन रमन सिंह कोई तोर ना पेन लेहका माने आंदूर-तो मन भावुक हो जाता है कि सच में आदिवासी मन निर्मल और सरल होता है। यह बात अंतागढ़ विधानसभा क्षेत्र से रोमांचक मुकाबले में विजय हुए विधायक विक्रम उसेंड़ी बतातें है वह खुद भी भाव विभोर हो जाते है। चुनाव के दौरान बाते खट्टे-मीठे लम्हों को याद करते हुए श्री उसेंड़ी कहते है कि बस्तर की 12 ०में से 11 सीटों पर क मल खिलने का श्रेय अगर किसी को है तो वो डॉ रमन सिंह को है। मुख्यमंत्री की सरलता सज्जनता, नीयत और नीति साफ रही जिस्से बस्तर के लोगो का मन जीत लिया इसलिए तो वे लोग अपनी भाषा में उन्हें अपना मसीहा मानते है।
तीसरी दफा विधायक चुने गए श्री उसेड़ी बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे और शिक्षा मंत्री का दायित्व भी निभा चुके है। इस बार सबसे कम अंतर 109 वोटों से चुनाव जीतने का रिकार्ड उनके नाम पर है। छत्तीसगढ़ वाच - से विशेष बातचीत करते हुए श्री उसेंड़ी ने कहा कि बस्तर अंचल में इस ऐतहासिक सफलता के पीछे कई कारण रहें। सर्वप्रथम गरीबों को तीन रुपए किलो में चांवल देने का खाद्यन्न साहयता योजना तो रही ही साथ में 25 पैसे में अमृत नमक, मुफ्त में बैल जोड़ी, पहले छ: प्रतिशत ब्याज की दर से कृषि ऋण, पाँच हार्स पॉवर तक किसानों को मुफ्त में बिजली आठवीं तक बालक, बालिकाओं को मुफ्त में किताब, तेंदूपत्ता बोनस चार गुना होना वन वासियों को नि: शुल्क चरण पादुका के साथ ही जन श्री बीमा योजना प्रमुख थी। इतनी सारी कल्याणकारी योजनाओं ने आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊचा करने के साथ ही उनका दिल भी जीत लिया है। श्री उसेंडी बताते है कि बस्तर विकास प्राधिकरण का गठन ऐतिहासिक कदम था। इसमें विकास कार्यो की लंबी प्रक्रिया को कम करके सीधे स्वीकृति और राशि आंबटन ने सच में बस्तर की तस्वीर बदल दी। वो याद करते है कि हर तीन माह में होने वाली बस्तर विकास प्राधिकरण की बैठक में अध्यक्ष के तौर पर मुख्यमंत्री बड़ी गंभीरता से समस्याओं पर मनन कर तत्काल स्वीकृति प्रदान करते थे । इस्से सडक़, पानी, बिजली, स्वास्थ्य, के साथ ही पैसा उपलब्ध होने के साथ ही निर्माण भी शुरू हो जाता था। प्राधिकरण ने आदिवासी अंचल के विकास को धरातल पर उतारा और उन्हे अमली जामा पहनाया। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के विकास कार्यो की सराहना विपक्षी दल कांग्रेस के लोग भी करते है और इसमें कोई दो राय नहीं कीबस्तर की तस्वीर डॉ रमन सिंह ने ही बदली है।
वे याद करते हुए बतातें है कि आजादी के 61 वर्ष बाद की बस्तर के कोई गाँव में जब बिजली पानी की समस्या थी। ऐसे ही पंखाजूर के पी.वी.-61 नाम के गाँव में जब 8.8.2008 के एतिहासिक दिन बिजली पहुंची तो समाचार पत्रों में यहीं प्रकाशित हुआ कि - आजादी की 61वीं वर्षगांठ पर 61 गांँव पर बिजल।- इस तरह वे बतातें है कि कई गाँव में पीने का पानी की गंभीर समस्या थी। हेंडपंप की फास्ट रिंग मशीन पहाड़ों को पार करके गांवों में नहीं पहुँच पाती तब विभागीय इंजीनयरों की जानकारी पर ट्रेक्टर माउंटेन मशीन हैदराबाद से खरीदी गई और जब पीवी-63 नामक गाँवों में खुदाई की गई तो वहाँ के निवासियों के खुशी अपार थी। बाद में इस मशीन से कई गाँवों की समस्या का अंत हुआ।
श्री उसेंडी जी बताते है कि सुदूर बस्तर के अंतागढ़ में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज के लिए ही आईटीआई और पंखाजूर में स्टेडियम निर्माण ने बहुत कुछ ऊंचाईयाँ दी है। बस्तर के विकास में विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज मील का पत्थर साबित होगें और आदिवासियों के जीवन स्तर को कैसा ऊंचा उठायेंगे। बस्तर में सिचाई की सुविधा का आभाव है। इस कमी को दूर करने का प्रयास होगा और अब दूसरे कार्यकाल में आदिवासियों के आर्थिक विकास की नई योजनाओं से उनके रहन सहन में व्यापक बदलाव की उम्मीद है। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के प्रति बस्तर की जनता ने जो विश्वास व्यक्त किया है। उसका प्रतिफल अवश्य मिलेगा और वे अब और ज्यादा ध्यान देंगे कि किस तरह बस्तर के लोगों के विश्वास पर और ज्यादा कार्य कर सकें। विश्वास है कि डॉ रमन सिंह ने भोले-भाले आदिवासियों के लिए बेहतर योजना बनाएंगे।

बीएससी तक पढ़े लिखे हैं विक्रम उसेंडी -विज्ञान स्नातक विक्रम उसेंडी पूर्व में शिक्षक भी रह चुके हैं 1987 में शिक्षक संघ के सचिव से सार्वजनिक जीवन में पदार्पण करने वाले श्री उसेंडी ने सन 1993 में पहला विधानसभा चुनाव नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र से लड़ा और बहुत कम मार्जिन 316 वोट से चुनाव जीते। सन 1998 में वे बहुत कम वोट 614 से चुनाव हार गए। लेकिन 2003 में वे बड़े अंतर 8814 मतों से विजयी हुए तो इस बार वे सबसे कम मतों के मार्जिन 109 वोटों से जीत का सेहरा पहन सके। दो पुत्र मोहनिस और श्रेयांस के पिता श्री उसेंडी की पत्नी शिक्षिका है और उनकी रूचि खेल में बहुत ज्यादा है। 1997-98 में क्यूबा के अंतरराष्टï्रीय युवा सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करना उनके लिए यादगार है। खास बात ये है कि चारों बार उनके खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार उनके प्रतिद्वंद्वी थे।

हेलीकाप्टर के नहीं आने से हार हुई थी 1998 में - हाल में संपन्न हुए चुनाव में श्री उसेंडी को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। पहले टीवी चैनलों में लगातार यह दिखा दिया था कि मंतूराम पवार चुनाव जीत गए जबकि ऐसा नहीं था वे बताते हैं कि श्री पवार ग्यारहवें राऊंड में करीब 500 वोटों की लीड मिलने के बाद फूलमाला पहनकर निकले तो चैनल वालों ने समझ लिया कि वे जीत गए और खबर फैल गई जबकि बाद में चार राउंड की और गणना हुई। वे बताते हैं कि 1998 में रमेश बैस हेलीकाप्टर से नारायणपुर में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचने वाले थे लेकिन नहीं आए। इसके चलते हेलीकाप्टर देखने से वंचित, आदिवासियों ने उन्हें झूठा समझकर वोट नहीं दिया और मात्र 634 मतों से हार गए। इस बार भी 25000 की भीड़ नवजोत सिंह सिद्धू को देखने इक_ïी हुई लेकिन वे नहीं आए इतना ही नहीं अगले दिन का कार्यक्रम बना तो फिर नहीं आए। इस वजह से उन्हें ताने सुनने पड़ गए और कार्यकर्ता बहुत हतोत्साहित हो गए थे। चिंता जताई लेकिन वे अंतत: जीत गए पर वे अगली बार हेलीकाप्टर से आने वाले नेताओं की सभा से बचना चाहिए ।

लोक कला समाज का दर्पण


लोक कला एक पूरे समाज का दर्पण है। इसके रंग में समाज को पूर्णतया देखा जा सकता है। दूसरे शब्दों में लोक कला वह सांस्कृतिक धरोहर है जिससे समाज की जीवनधारा प्रवाहित होती है। धार्मिक अनुष्ठïान से जुडक़र सामाजिक रीति-रिवाजों का अभिन्न अंग बनकर यह श्रंृगार प्रदान करती है। जीवन के गहरेपन के अहसास के साथ ही एक भावनात्मक लगाव उत्पन्न कर जीवन में उमंग एवं उल्लास पैदा करने का कारक बनती है। सही मायनों में लोक कला व शिल्प समाज का अभिन्न अंग है।

छत्तीसगढ़ की भूमि देश की सांस्कृतिक समृद्धि में अपना अनूठा स्थान रखती है। करीब दो लाख परिवार सीधे तौर पर इस संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में जुटे हुए हैं। रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक गाथाओं की अनुपम शैली में जीवन मूल्यों के प्रेरणा ोत काव्य का गायन यहां रचा-बसा हुआ है। रामायण की रामधुनी और महाभारत की पंडवानी गायन व अभिनव शैली लाजवाब है। जिसके बलबूते पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर झाडूऱाम देवांगन, तीजन बाई व ऋतु वर्मा जैसी कलाकारों ने ख्याति अर्जित की है।

लोक कला के अपने मापदंड होते हैं, जिसमें प्रकृति एवं जीवन के बीच तादम्य स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़ के बहुसंख्यक कलाकार आज के संदर्भ में ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हो के कारण बावजूद पौराणिक कथाओं की आत्मा का अहसास दिलाते हैं।

सबसे अहम बात तो यह है कि पिछड़े, दलित और आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के बावजूद छत्तीसगढ वासियों में सहज संस्कार की परंपरा आज भी जीवित है। अपनी माटी की सुगंध को सहेजकर इन लोक कलाकारों ने कई चुनौतियों का सामना किया है। सुनकर याद करना और उसे मौखिक रूप से पुन: प्रस्तुत करने में इनका कोई सानी नहीं है। लोक रूचि के अनुरूप थोड़ा बहुत बदलाव इन कलाओं में हो सकता है लेकिन आज भी परंपरागत ढंग़ से इनकी प्रस्तुतियां मन मोह लेती है।

प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में भ्रष्टाचार केंद्र ने रोकी राशि

प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में भ्रष्टाचार केंद्र ने रोकी राशि
रायपुर । प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में अफसरों के भ्रष्टï कारनामों के चलते विभागीय मंत्री रामविचार नेताम के लिए खासा सिरदर्द साबित हो रहा है। इस योजना की करीब 600 करोड़ रुपए की राशि केंद्र ने रोक ली है। भ्रष्ट अधिकारियों ने जिन दर्जनभर ठेकेदारों को काली सूची में डाला है उसकी करतूत अब उजागर होने लगी है। ठेकेदारों के मुताबिक केंद्रीय गुणवत्ता जांच दल को जिन सडक़ों को दिखाया गया वो दरअसल सबसे अच्छी सडक़ें थी और ठेकेदार भी वे थे जो भ्रष्टï अफसरों के काली करतूतों में शांिमल नहीं थे। ये ठेकेदार पहले ही एक साल के लिए विभाग की ब्लैक लिस्ट में थे और इसके खिलाफ कतिपय ठेकेदार अदालत की भी शरण में हैं। कहा जा रहा है कि भ्रष्टï अफसरों ने अपना गिरेबां बचाने के लिए छोटी मछलियों को फंसा दिया है और बड़े मगरमच्छ को बचाया जा रहा है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के घोटाले में घोटाला किया जा रहा है। हटाए गए चीफ इंजीनियर ओपी मिश्रा और कार्यपालन यंत्री एफ.एच. खान की गड़बडियों पर पर्दा डालने के लिए उन लोगों पर कार्रवाई की जा रही है जो इनके घोटालों में शामिल नहीं थे और पहले से ही इनकी प्रताडऩा के शिकार थे। इस संदर्भ में अच्छा काम करने वाली फर्म एनसी नाहर का उदाहरण दिया जा राह है। मिली जानकारी के अनुसार इस फर्म को हटाये गए मुख्य अभियंता श्री मिश्रा ने 14 अगस्त सन 2008 को टेंडर में तथ्यों को छुपाने के आरोप पर विभाग की काली सूची में एक वर्ष के लिए डाल दिया था कहा जाता है कि अपने चहेते ठेकेदारों को ठेका दिलाने के लिए श्री मिश्रा ने ये कार्रवाई की थी। एन सी नाहर फर्म की छत्तीसगढ़ में अच्छी साख है और बेहतर कार्य निष्पादन के लिए इसे जाना जाता है। फर्म के संचालकों ने इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में फिर याचिका दायर की है। इसके चलते विभागीय अधिकारियों ने अपने भ्रष्टï कारनामों पर पर्दा डालते हुए इस फर्म पर घटिया सडक़ निर्माण के कथित आरोपों पर नयी सूची में भी नाम सूचीबद्ध कर दिया और विभागीय यंत्री सहित मीडिया को भी गुमराह किया है।
फर्म के संचालक इसके खिलाफ केंद्रीय विभाग सहित मुख्यमंत्री को भी जानकारी देकर भ्रष्टï की काली करतूतों को बताने के प्रयास में है तो बाकी अन्य ठेकेदार भी विभागीय अधिकारियों के इस खेल की पोल खोलने में जुट गए। ठेकेदारों के मुताबिक सड्डू-उरकुरा मार्ग सहित कई माग की सडक़ें फर्म द्वारा बनाई गई सडक़ों की जांच करें तो बहुत सी चौंकाने वाली जानकारियां सामने आएगी। नेशनल क्वालिटी मानिटरिंग की टीम को विभागीय अफसरों ने सबसे अच्छी सडक़ें दिखाई जो घटिया पाई गई तो बाकी सडक़ें कैसे बनी होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत संचालित प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना भारी विवादों के केंद्र में है। इस योजना के हजारों करोड़ रुपए की राशि में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और उनके चहेते ठेकेदारों ने जो भ्रष्टïाचार किया है उसकी कालिख सरकार के मुंह पर पुती है। इसे साफ करने के लिए सरकार को छोटी मछलियों की जगह बड़े मगरमच्छों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि विभाग की सफाई हो सके।

जैन एजुकेशन सोसायटी को बुनाई मशीन भेंट


रायपुर. कई महिलाओं को बुनाई-सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में महती भूमिका अदा करने वाली सेवानिवृत्त शिक्षिका श्रीमती राजेश जैन ने जैन एजुकेशन सोसायटी को पांच बुनाई मशीनें भेंट की हैं। लोकमान्य सदभावना समिति के कार्यालय में आयोजित सादगीपूर्ण समारोह में सोसायटी के जी.सी. जैन, हंसराज कोठारी, मोतीलाल झाबक के अलावा समिति के अध्यक्ष तपेश जैन, सचिव मधुसूदन शर्मा, चंद्रप्रकाश स्वर्णकार, अपूर्व पारेख, विजय जैन, नागेंद्र वर्मा, के.के. शर्मा उपस्थित थे। इस अवसर पर जी.सी. जैन ने श्रीमती राजेश जैन के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि इन मशीनों से जैन एजुकेशन सोसायटी गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम करेगी। समिति ने सांप्रदायिक सदभावना का परिचय देते हुए इस अवसर पर हज यात्रा कर लौटे हाजी इकबाल मुन्ना भाई का सम्मान भी किया।

अपना गम भूल गए विमोचित


रायपुर। दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है, लोगों का गम देखा तो अपना गम भूल गया। इस पंक्ति को गाकर विकलांगों ने जता दिया कि इस दुनिया में दूसरे लोगों के मुकाबले उनका गम कम है और वे अपना गम भूल गए हैं। अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद द्वारा आयोजित विकलांग युवक-युवती परिचय सम्मेलन पर आधारित वीडियो डाक्यूमेंट्री फिल्म अपना गम भूल गए का विमोचन स्थानीय आशीर्वाद भवन में आयोजित विकलांग सामूहिक विवाह समारोह में हुआ। इस अवसर पर सूत्रधार पिंकी यादव, रागिनी पदमशाली के साथ ही मारवाड़ी युवा मंच के राष्टï्रीय महामंत्री अशोक अग्रवाल, निर्देशक तपेश जैन, वीडियो एडिटर अश्वनी बंजारे, श्री परशुराम युवा मंच के संस्थापक सदस्य राघवेंद्र मिश्रा व मधुसूदन शर्मा उपस्थित थे. इच्छा फिल्म्स के गिरीशराज के विशेष सहयोग से निर्मित इस वृत्त का चित्र का फिल्मांकन सत्येंद्र ठाकुर ने किया है। गौरतलब है कि अपना गम भूल गए, निर्देशक तपेश जैन की 25वीं डाक्यूमेंट्री फिल्म है। इससे पहले उनकी स्वर्ण तीर्थ राजिम, जय मां बम्लेश्वरी, जय राजीव लोचन और डेहरी के मान आमजनों के बीच बेहद लोकप्रिय रही है। विमोचित वृत्त चित्र अपना गम भूल गए का प्रदर्शन प्रोजेक्टर एवं केबल नेटवर्क के माध्यम से पूरे देश में किया जाएगा।