Saturday, November 25, 2006

समकालीन समाज का कोलॉज है डेहरी के मान

छत्तीगढ़ी फिल्मों की अच्छी संभावनाएं है प्रदेश में

रायपुर। छत्तीसगढ़ की बहुआयामी संस्था सृजन-सम्मान ने पहली छत्तीसगढ़ी टेलीफिल्म ‘डेहरी के मान’ की समीक्षा गोष्ठी आयोजित की जिसमें छत्तीसगढ़ी फिल्मों के भविष्य पर भी चर्चा की गई। शिक्षाप्रद फिल्म डेहरी के मान को समकालीन समाज का कोलाज बताते हुए यहां के सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के साथ ही अच्छी फिल्मों की आवश्यकत निरूपित की गई। विद्वान साहित्यकारों ने फिल्म और साहित्य के बीच सेतु बनाने के पहल जैसे प्रयास की भी सराहना की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गोपान अग्रवाल थे वहीं अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रमाशंकर तिवारी दुबे, श्री अनवर, अरविंद शर्मा, अनुपम वर्मा, डॉ. महेंन्द्र ठाकुर, बंटी चंद्राकर, तपेश जैन आदि बड़ी संख्या में साहित्यकार व फिल्म से जुड़े हुए कलाकार उपस्थित थे। समीक्षा गोष्ठी का संचालक संतोष रंजन ने किया। समीक्षा गोष्ठी की शुरूआत में समीक्षक चंद्रशेखर व्यास ने सिनेमा विधा के कई तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लगातार प्रयासों से ही सीखा जा सकता है और छत्तीसगढ़ में अभी बहुत कुछ सीखने की जरुरत है। छत्तीसगढ़ी टूडे के संपादक जगदीश यादव ने फिल्म के कथा वस्तु और निर्देशकीय तत्व की सराहना करते हुए कहा कि छतत्तीसगढ़ी फिल्में अगर सोद्देश्य बनाई जाएं तो समाज में निश्चित रुप से बदलाव आयेगा। फिल्म के गीत-संगीत की समीक्षा करते हुए अरबिंद शर्मा ने बच्चों के लिए रचित गाने को छत्तीसगढ़ी फिल्म में नया प्रयोग बताया। साहित्कार राम पटवा ने संवादों को प्रभावी बताते हुए कहा कि फिल्म की भाषा स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने में सक्षम है। संवाद में कसावट से दर्शक बंधा रहता है।

कवि एवं ललित निबंधकार जय प्रकाश मानस ने कहा कि फिल्म में दहेज, टोनही प्रथा राजनीतिक जागरुकता, भारतीय संस्कृति, शिक्षा के साथ ही परिवार के बंटने की प्रक्रिया को उजागर करने वाली घटनाओं का एक कोलाज गढ़ा गया है। इस दृष्टि से निर्देशन को सफल कहा जा सकता है। उक्त अवसर पर नागेंन्द्र दुबे, श्री अनवर, डॉ. महेंद्र ठाकुर, डॉ. जवाहर ने भी रंग सज्जा, वेशभूषआ, संगीत, गीत तथा अभइनय कला पर विचार व्यक्त किए ! कार्यक्रम के अधअयक्ष रामशंकर तिवारी ने फिल्म की कमियों को उजागर करते हुए कहा कि फिल्म में छत्तीसगढ़ की वेशभूषा को ध्यान में सही रखा गया। अच्छा होता यदि यहां के रहन-सहन का चित्रण होता। श्री तिवारी ने छत्तीसगढ़ फिल्मों में साहित्यकारों की सहभागिता को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर निर्माता-निर्देशक साहित्कारों वे साथ सहभागिता बढ़ाकर फिल्म बनाएं तो छत्तीसगढ़ी फिल्म और ज्यादा प्रभावकारी सिद्ध हो सकती हैं ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समाज सेवी गोपाल अग्रवाल ने फिल्म के तकनीकी पक्षों की कमजोरियों को स्वीकार करते हुए भविष्य में इसके सुधार करने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर सृजन-सम्मान द्वारा श्री अग्रवाल को पुस्तकों का एक सैट भेंट कर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम कें संचालक गीतकार संतोष रंजन शुक्ल ने समीक्षा गोष्ठी का समापन करते हुए कहा कि “एरर एंड़े ट्रायल” की थ्योरी से ही छत्तीसगढ़ी फिल्मों का विकास होगा और डेहरी के मान से इसकी सार्थक शुरूआत हुई है।

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