छत्तीसगढ़ का प्रमुख पर्यटन स्थल
डोंगरगढ़, राजनांदगांव जिले की इस तहसील को कौमी एकता की मिसाल और तपोभूमि कहा जाए तो गलत नहीं होगा। मां बम्लेश्वरी मंदीर के लिए विख्यात ड़ोगरगढ़ में हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई सभी सम्प्रदाय की इबादतगाह है। और तो और सभी पूजा-स्थलों की मान्यताएं व किवदंतियां हैं। मुस्लिम समाज यहां टेकरी वाले बाबा और कश्मीर वाले बाबा की दरगाह में सजदा करते हैं, तो सिख ऐतिहासिक गुरुद्वारे में कीर्तन। ईसाइयों का चर्च यहां पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। कहा जाता है, कि ब्रिटिश शासनकाल में बना ये चर्च छत्तीसगढ़ का पहला चर्च है।
आदिवासियों के आराध्य बूढ़ादेव के मंदिर की अपनी अलग दंत कथा है तो दंतेश्वरी मैय्या भी यहां विराजमान है। मूंछ वाले राजसी वैभव के हनुमान जी की छह फीट ऊंची मूर्ति के अलावा खुदाई में निकली जैन तीर्थंकर चंद्रप्रभु की प्रतिमा भव्य एवं विशाल है। बौद्ध धर्मावलंबियों ने यहां प्रज्ञागिरी में भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित कर डोंगरगढ़ को धार्मिक एकता के सूत्र में मजबूती से बांधने का काम किया है। सभी समाजों के पूजा-स्थलों की मान्यताओं के साथ डोंगरगढ़ विख्यात है मां बम्लेश्वरी मंदिर के लिए, पर्वतवासिनी मां बम्लेश्वरी देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को करीब एक हजार एक सौ एक सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। चारों तऱफ पहाड़ों से घिरे डोंगरगढ़ का इतिहास अद्भुत है। राजा विक्रमादित्य से लेकर खैरागढ़ रियासत तक के कालपृष्ठों में मां बम्लेश्वरी की महिमा गाथा मिलती है।
माँ बम्लेश्वरी सबकी इच्छाएं पूरी करती है। हर समस्या का निदान मां के चरणों में है। सभी धर्म और आध्यात्मिक गुरुओं ने ये स्वीकार किया है कि “आराधना और प्रार्थना अद्भत तरीके से फलदायी होती है। या तो यह मानसिक तौर पर प्रार्थना करने वाले को संबल प्रदान करती है या फिर चमत्कार करती है।”
इसी चमत्कार के कारण डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी मंदिर की स्थापना हुई। दंतकथा है कि आज के करीब ढाई हजार साल पहले इस नगर का नाम कामावतीपुरी था। यहां राजा बीरसेन राज करते थे। इनकी कोई संतान नहीं थी । राज को यह जानकारी मिली कि नर्मदा नदी के तट पर एक तीर्थ है। महिष्मती, जहां भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस बात का पता चलते ही राजा-रानी ने शुभ मुहुर्त में नर्मदा नदी के तट पर भगवान शंकर और पार्वती की अलग-अलग आराधना की । इस प्रार्थना के एक वर्ष बाद उन्हें सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। इस चमत्कार से अभिभूत होकर राजा बीरसेन ने पहाड़ी की चोटी पर माँ पार्वती के मंदिर की स्थापना की । भगवान शिव अर्थात् महेश्वर की पत्नी होने के कारण पार्वती जी का नाम महेश्वरी भी है। कालान्तर में महेश्वरी देवी ही बम्लेश्वरी कहलाने लगी। तब से ऐसी मान्यता है कि माँ बम्लेश्वरी की जो सच्चे मन से पूजा करता है, उसके सब दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
मुंबई-हावड़ा रेल लाइन के बीच स्थित डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र एक सौ चार किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से यहां पहुंचने के लिए रास्ता प्रसिद्ध जी. ई. रोड के तुमड़ीबोड़ से मुड़ता है । राजनांदगांव जिले की यह सबसे बड़ी तहसील है। यहां की आबादी करीब 50 हजार है। पहले डोंगरगढ़ रियासत में शामिल था और खैरागढ़ नरेश कमल नारायण सिंह ने इसकी ख्याति चारों तरफ फैलाई। पहाड़ी की तलहटी पर छोटी बम्लई माता मंदिर के नवनिर्माण के साथ ही उन्होंने माँ की स्तुति में जसगीतों की रचना कर बम्लेश्वरी मैया की ख्याति न सिर्फ छत्तीसगढ़ वरन सम्पूर्ण देश के कोने-कोने में पहुँचाई । सन् 1964 में मंदिर के संचालन के लिए राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक समिति बनाई जो श्री बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति के नाम से जानी जाती हैं। इस समिति ने बम्लेश्वरी मंदिर का विकास तेज गति से किया । इस प्रकार देवी भक्तों की सुवीधा में लगातार इजाफा होता गया । मंदिर ट्रस्ट समिति ने नयी सीढ़ियों के निर्माण के साथ ही यहां पेयजल-आवास एवं सफाई की समुचित व्यवस्था के अलावा रियायती दर पर केंटीन प्रारंभ की, ताकि भक्तगणों को सुविधाएं मिल सकें।
इसी तरह डोंगरगढ़ नगर पालिका परिषद ने मेला स्थल के विकास के साथ ही, रोप-वे उड़न खटोला का निर्माण कर लाचार एवं बुजुर्ग दर्शनार्थियों की भावनाओं को देवी माँ तक पहुँचाने में सहायता प्रदान की। क्षीरपानी जलाशय के सौंदर्यीकरण में भी चार चांद लग गया है। करीब एक हजार सीढ़ियों की चढ़ाई के दौरान पहाड़ों और जंगलों की नैसर्गिक सुषमा यात्रियों के मन को शांति प्रदान करने के साथ ही अलौकिक सुख का अनुभव कराती है। पहाड़ी की तलहटी पर स्थित तपस्वी तालाब के संबंध में भी कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इसके आसपार की गुफाओं में तप करने ऋषि-मुनि आते थे इसलिए इसका नाम तपस्वी तावाब हो गया। इसके साथ हीमाँ रणचण्डी देवी का मंदिर है जिसे टोनी बम्लाई भी कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मदिर में जादू-चोने की जांच की जाती है। मंदिर मेंभक्त दीपक या अगरबत्ती जलाने के लिए अगर माचिस जलाता है और उसकी माचिस नहीं जलती तो यह माना जाता हैकि उस पर जादू-टोना किया गया है। माचिस अगर जल जाती है तो तंत्र-मंत्र की बात निर्मूल साबित होती है। डोंगरगढ़ की पर्वतवासिनी, माँ बम्लेश्वरी के मंदिर की प्राचीनता संदेह की परिधि से सर्वथा बाहर है। माँ की अतिशय मूर्ति बिगत ढाई हजार से अधिक वर्षों से करोड़ों श्रद्धालुओं की श्रद्धा एवं उपासना का केन्द्र बनी हुई है। मंदिर मार्ग में रणचण्डी मंदिर के अलावा नागदेवता का मंदिर भी है । भीम पैर के संदर्भ में भी कई दंत कथाएं हैं। कहा जाता है कि पाण्डव और भगवान राम ने भी इस नगरी में विचरण किया था।
पहाड़ी से घिरे इस नगर में हर धर्म के लोग अलग-अलग समय में जुटते हैं। चैत्र और क्वांर नवरात्रि में करीब दस से बारह लाख लोग यहां आते हैं तो 6 फरवरी को प्रज्ञागिरी में देश-विदेश के बौद्ध भिक्षु, गुड फ्राइडे को मध्यभारत का मसीही समाज यहां पूजा करने आता है, तो टेकरी वाले बाबा के उर्स पार्क पर पहुँचने है मुस्लिम भाई।
स्थानीय निवासियों के मुताबिक हर साल करीब 40 लाख से भी ज्यादा लोग बाहर से यहां विभिन्न पूजा स्थलों के दर्शन के लिए आते हैं। छत्तीसगढ़ में इतनी बड़ी संख्या में धार्मिक पर्यटक अन्य किसी स्थान में नहीं जुटते । डोंगरगढ़ के युवा विधायक विनोद खांडेकर इसे पर्यटन स्थल का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं । वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र में साइंस और उर्जा पार्क की स्थापना भी हो । पर्यटन स्थल का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र में साइंस और उर्जा पार्क की स्थपना भी हो। पर्यटन मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल का ध्यान भी इस ओर आकर्षित कराया है। श्री अग्रवाल भी मानते हैं कि डोंगरगढ़ को बेहतर पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है। श्री बम्लेश्वरी मंदिर ट्रस्ट समिति के अध्यक्ष नटवर भाई पटेल और प्रबंधक कृष्णा कुमार तिवारी भी डोंगरगढ़ की इन विशेषताओं के आदार पर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग राज्य शासन से कर चुके हैं।
मंदिर समिति ने अभी एक करोड़ रुपए की लागत से अस्पताल निर्माण का काम प्रारंभ किया है जो इस दिशा में सार्थक साबित होगा। पर्यटन मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने डोंगरगढ़ के विकास में विशेष रूचि ली है। यहां सर्वसुविधायुक्त धर्मशाला का निर्माण द्रुतगति से जारी है। वगीं सड़क-पानी के लिए कई विकास कार्य स्वीकृत हुए हैं। स्थानीय विधायक विनोद खांडेकर एवं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने डोंगरगढ़ को संवारने में पूरा सहयोग प्रदान किया है। आने वाले समय में यहां पर्यटकों की संख्या में दिनोदिन वृद्धि होगी - इस कामना के साथ।
Saturday, November 25, 2006
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