समुद्रतल से 3060 फीट ऊंची 2500 वर्ग किलोमीटर की पर्वत श्रृंखला चैतुरगढ़ मैकल पर्वत श्रेणी में सबसे ऊंची पायदान पर है। अलौकिक गुप्त गुफा, झरना, नदी, जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी और औषधीय वृक्ष कंदलओं से परिपूर्ण इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है। क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में भी यहां का तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेट से ज्यादा नहीं रहता है।
अनुपम अलौकिक, प्राकृतिक छटा का वह क्षेत्र दुर्गम भी है। बिलासपुर कोरबा रोड के 50 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक जगह पाली है जहां से करीब 125 किलोमीटर दूर लाफा है। लाफा से 30 किलोमीटर ऊंचाई पर है चैतुरगढ़।
चैतुरगढ़ में आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, शंकर खोल गुफा दर्शनीय एवं रमणीय स्थल है। इस पर्वत श्रृंखला में चामादहरा, तिनधारी और श्रृंगी झरना अद्वितीय सुंदर है। इस पर्वत श्रृंखला में जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल भी है। इसी नदी के आगे तट पर तुम्माण खोल प्राचीन नाम माणिपुर स्थिर है जो कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी।
पौराणिक कथा के अनुसार मातेश्वरी ने चामर चक्षुर, वाण्कल विड़ालक्ष एवं महाप्रतापी महिषासुर का संहार कर कुछ पल इस पर्वत शिखर पर विश्राम पर देवों को मनवांछित वर प्रदान कर माणिक द्वीप में अंतर्ध्यान हो गई थी।
दूर्गम पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से कई वर्षों तक यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय राजा मल्लदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद जाज्वल्बदेव ने भी 1100 ई. काल में यहां स्थित मंदिर और किले का जीर्णोद्धार करवाया था। चैतुरगढ़ किले के चार द्वार बताये जाते हैं जिसमें सिंहद्वार के पास महामाया महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है तो मेनका द्वार के पास है शंकर खोल गुफा। मंदिर से तीन किलोमीटर दूर शंकर खोल गुफा का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना है। कहते हैं कि पर्वत के दक्षिण दिशा में किले का गुप्त द्वार है जो अगम्य है। किंवदंती के अनुसार आदि शक्ति मां महिषासुर मर्दिनी इसे गुप्त द्वार से ही गुप्त पुरी माणिक द्वीप में अंतर्ध्यान हुई वहीं धनकुबेर का ख़जाना इसी द्वार से लाया जाता रहा है।
अपने अलौकिक प्राकृतिक छटा के साथ ही चैतुरगढ़ ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, स्थलों के रूप में प्रसिद्ध है। दुर्गम पहाड़ी पर पर्यटन का अपना अलग ही आनंद है।
चैतुरगढ़ की तलहटी पर लाफा में प्राचीन महामाया मंदिर और बूढ़ारक्सादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। पाली में नौकोनिया तालाब के तट पर प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर की स्थापत्य कला आबू के जैन मंदिरों की तरह अद्भूत है। जालीदार गुम्बज एवं स्तम्भों में उत्कीर्ण मूर्तियां कलात्मक एवं सुंदर है। पाली में पर्यटकों के विश्राम हेतु पर्यटन मंडल ने विश्राम गृह का निर्माण किया है।
अनुपम अलौकिक, प्राकृतिक छटा का वह क्षेत्र दुर्गम भी है। बिलासपुर कोरबा रोड के 50 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक जगह पाली है जहां से करीब 125 किलोमीटर दूर लाफा है। लाफा से 30 किलोमीटर ऊंचाई पर है चैतुरगढ़।
चैतुरगढ़ में आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, शंकर खोल गुफा दर्शनीय एवं रमणीय स्थल है। इस पर्वत श्रृंखला में चामादहरा, तिनधारी और श्रृंगी झरना अद्वितीय सुंदर है। इस पर्वत श्रृंखला में जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल भी है। इसी नदी के आगे तट पर तुम्माण खोल प्राचीन नाम माणिपुर स्थिर है जो कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी।
पौराणिक कथा के अनुसार मातेश्वरी ने चामर चक्षुर, वाण्कल विड़ालक्ष एवं महाप्रतापी महिषासुर का संहार कर कुछ पल इस पर्वत शिखर पर विश्राम पर देवों को मनवांछित वर प्रदान कर माणिक द्वीप में अंतर्ध्यान हो गई थी।
दूर्गम पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से कई वर्षों तक यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय राजा मल्लदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद जाज्वल्बदेव ने भी 1100 ई. काल में यहां स्थित मंदिर और किले का जीर्णोद्धार करवाया था। चैतुरगढ़ किले के चार द्वार बताये जाते हैं जिसमें सिंहद्वार के पास महामाया महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है तो मेनका द्वार के पास है शंकर खोल गुफा। मंदिर से तीन किलोमीटर दूर शंकर खोल गुफा का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना है। कहते हैं कि पर्वत के दक्षिण दिशा में किले का गुप्त द्वार है जो अगम्य है। किंवदंती के अनुसार आदि शक्ति मां महिषासुर मर्दिनी इसे गुप्त द्वार से ही गुप्त पुरी माणिक द्वीप में अंतर्ध्यान हुई वहीं धनकुबेर का ख़जाना इसी द्वार से लाया जाता रहा है।
अपने अलौकिक प्राकृतिक छटा के साथ ही चैतुरगढ़ ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, स्थलों के रूप में प्रसिद्ध है। दुर्गम पहाड़ी पर पर्यटन का अपना अलग ही आनंद है।
चैतुरगढ़ की तलहटी पर लाफा में प्राचीन महामाया मंदिर और बूढ़ारक्सादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। पाली में नौकोनिया तालाब के तट पर प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर की स्थापत्य कला आबू के जैन मंदिरों की तरह अद्भूत है। जालीदार गुम्बज एवं स्तम्भों में उत्कीर्ण मूर्तियां कलात्मक एवं सुंदर है। पाली में पर्यटकों के विश्राम हेतु पर्यटन मंडल ने विश्राम गृह का निर्माण किया है।
1 comment:
sir lafagarh is highest peak of maikal.. give me source
Post a Comment