कहते हैं जहां से रोग मिलता है वहीं मिट्टी में उसका इलाज भी होता है। बीमारी और उपचार की इस थ्योरी पर ही जड़ी-बूटियो की पहचान हुई और आयुर्वेद जैसी पद्धति प्रचलन में आई। यूनानी तौर-तरीकों में भी कुछ इसी तरह से पेशेंट को मेडीसिन दी जाती है। होम्योपैथी में तो लोहे को लोहा काटने के सिद्धान्त पर लक्षण के आधार पर दवा दी जाती है। हजारों वर्षों से आजमाए हुए नुस्खे स्वयं और अद्भूत है। इन तमाम इलाज पद्धतियों ने ऐलोपैथी को समय समय पर चुनौती दी है और कई बार अपनी सार्थकता सिद्ध की है। इन सब पर चर्चा करने का सबब यह है कि अद्भूत और आश्चर्यजनक तथ्यों को समेटे छत्तीसगढ़ प्रदेश में एक ऐसा स्थान है जहां कुत्ता काटने पर अनोखा इलाज होता है और वर्षों से यह उपचार सफल है।
अनोखे इलाज के लिए न तो कोई बैगा दवा दैता है और ना ही किसी तरह का झाड़-फूंक किया जाता है। कुत्ता काटने के शिकार रोगी को बस एक अनार के पेड़ की सात बार परिक्रमा करनी है और हर बार परिक्रमा के दौरान इस पेड़ के जड़ की चुटकी भर मिट्टी को फांकना है। इस सात चुटकी मिट्टी की तासीर ये है कि कुत्ता काटने से होने वाला रोग रोगी को नहीं होता है। पिछले 50-60 सालों से लाखों लोग इस दवा को आजमा रहे हैं और अब तक यह सफल भी है।
बात हो रही है कुत्ता काटने के अनोखे इलाज कुकुर चब्बा की तो यह कुकुर चब्बा दूर्ग जिले के धमधा विकासखंड में है । धमधा बस्ती से करीब दो किलोमिटर दूर खेतों के बीच स्थित कुकुर चब्बा तक पहूँचने के लिए आठ-दस खेतों की मेड़ को पार करना पड़ता है। टीकाराम साहू किसान के खेत पर पल्लवित अनार के पेड़ अब चबूतरा बना दिया गया है। पक्के चबूतरे के सम्मुख कुकुरदेव की एक प्रतिमा “कुकुर स्वस्थ” प्रतिस्थापित की गई है। पहले यहां इस प्रतिमा की पूजा नारियल चढाकर और अगरबत्ती जलाकर की जाती है। धमधा के इस कुकुर चब्बा में बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। इसका पता यहां रखे एक रजिस्ट्रर से चलता है। इस रजिस्ट्रर में छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थलों के अलावा उड़ीसा, महाराष्ट्र प्रदेश से आए लोगों के भी नाम पते दर्ज है। खेत की किसान टीकाराम साहू से जब यह पूछा गया कि उसने यह रजिस्ट्रर क्यों रखा है तो बताया गया कि सड़क से यहां तक पहुँचने में रोगी और उनके परिजनों को बेहद परेशानी होती है, इस तकलीफ को दूर करने के लिए यहां सड़क बनाने की मांग एस.डी.एम. से की गई तो उन्होंने मुद्दा हवा में उड़ा दिया। इसके बाद विचार आया कि यहां आने बालों लोगों की संख्या और लोगों के नाम-पते देखने के बाद यहां दस लाख रुपये की लागत से डब्लू.बी.एम. सड़क बनाने की स्वीकृति मिल गई है।
यहां इस बात का उल्लेख करना सामयिक होगा कि धमधा छत्तीसगढ़ का एक गढ़ था जहां गोंड़ राजाओं का राज्य था। इस गढ़ का किला आज भी जीर्ण-शिर्ण अवस्था में है। इस किले में सुरंग और काल कोठरी के अवशेष मौजूद हैं। चारों तरफ तालाब से घिरे इस किले की कई कहानियाँ प्रचलित है। किले के पास ही गोंड़ राजाओं के आराध्य बूढ़ादेव का मंदिर है वहीं त्रिमूर्ति महामाया देवी मंदिर भी है। मंदिर की मजबूत चहारदीवारी स्थापत्य कला को रेखांकित करती है। धमधा में किले के दूसरी ओर चौकड़िया तालाब के तट पर प्राचीन चतुर्भुज, विष्णु और शिव मंदिर भी सैकड़ों साल पुराने है।
धमधा कभी छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नगर भी था। यहां बड़े पैमाने पर बर्तन बनाने का कुटीर उद्योग था। ताम्रकरों की पूरी बस्ती तमेरपारा बसी थी जहां हर घर में बर्तन बनाए जाते है। बाद में बड़े-कारखानों में स्टील के बर्तन बनने शुरु हुए तो परंपरागत पीतल, कांसा और मिश्रित धातु के बर्तन प्रचलन से बाहर हो गये। यहां रहने वाले विष्णु प्रसाद ताम्रकार बताते हैं कि धमधा की मिट्टी अद्भूत है। पास में ही स्थित जाताघर्रा में बड़े पैमाने पर टमाटर की फसल होती है। अखबारों में हर साल किसी किसान के लखपति बनने की खबर छपती ही है।
स्वर्णिम इतिहास को समेटे हूए धमधा में छह आगर, छह कोरी तालाब है यानी कुल 126 सरोवर। कहते हैं कि इन तालाबों में सोने के कछुए डाले गये हैं जिसकी वजह से तालाब कभी सूखते नहीं। तालाबों के तट पर रहने वाले ताम्रकारों के बीच एक मान्यता यह भी है कि सांप उन्हें काटता नहीं है इसलिए ताम्रकार कभी सांप को नहीं मारते हैं।
बहरहाल धमधा छत्तीसगढ़ का कभी नूर था लेकिन आज प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया है । दूर्गजिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर इस नगर में बसे ताम्रकार काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। हां कुकुर चब्बा के अनोखे इलाज के लिए यहां आने वाले लोगों का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
अनोखे इलाज के लिए न तो कोई बैगा दवा दैता है और ना ही किसी तरह का झाड़-फूंक किया जाता है। कुत्ता काटने के शिकार रोगी को बस एक अनार के पेड़ की सात बार परिक्रमा करनी है और हर बार परिक्रमा के दौरान इस पेड़ के जड़ की चुटकी भर मिट्टी को फांकना है। इस सात चुटकी मिट्टी की तासीर ये है कि कुत्ता काटने से होने वाला रोग रोगी को नहीं होता है। पिछले 50-60 सालों से लाखों लोग इस दवा को आजमा रहे हैं और अब तक यह सफल भी है।
बात हो रही है कुत्ता काटने के अनोखे इलाज कुकुर चब्बा की तो यह कुकुर चब्बा दूर्ग जिले के धमधा विकासखंड में है । धमधा बस्ती से करीब दो किलोमिटर दूर खेतों के बीच स्थित कुकुर चब्बा तक पहूँचने के लिए आठ-दस खेतों की मेड़ को पार करना पड़ता है। टीकाराम साहू किसान के खेत पर पल्लवित अनार के पेड़ अब चबूतरा बना दिया गया है। पक्के चबूतरे के सम्मुख कुकुरदेव की एक प्रतिमा “कुकुर स्वस्थ” प्रतिस्थापित की गई है। पहले यहां इस प्रतिमा की पूजा नारियल चढाकर और अगरबत्ती जलाकर की जाती है। धमधा के इस कुकुर चब्बा में बहुत दूर-दूर से लोग आते हैं। इसका पता यहां रखे एक रजिस्ट्रर से चलता है। इस रजिस्ट्रर में छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थलों के अलावा उड़ीसा, महाराष्ट्र प्रदेश से आए लोगों के भी नाम पते दर्ज है। खेत की किसान टीकाराम साहू से जब यह पूछा गया कि उसने यह रजिस्ट्रर क्यों रखा है तो बताया गया कि सड़क से यहां तक पहुँचने में रोगी और उनके परिजनों को बेहद परेशानी होती है, इस तकलीफ को दूर करने के लिए यहां सड़क बनाने की मांग एस.डी.एम. से की गई तो उन्होंने मुद्दा हवा में उड़ा दिया। इसके बाद विचार आया कि यहां आने बालों लोगों की संख्या और लोगों के नाम-पते देखने के बाद यहां दस लाख रुपये की लागत से डब्लू.बी.एम. सड़क बनाने की स्वीकृति मिल गई है।
यहां इस बात का उल्लेख करना सामयिक होगा कि धमधा छत्तीसगढ़ का एक गढ़ था जहां गोंड़ राजाओं का राज्य था। इस गढ़ का किला आज भी जीर्ण-शिर्ण अवस्था में है। इस किले में सुरंग और काल कोठरी के अवशेष मौजूद हैं। चारों तरफ तालाब से घिरे इस किले की कई कहानियाँ प्रचलित है। किले के पास ही गोंड़ राजाओं के आराध्य बूढ़ादेव का मंदिर है वहीं त्रिमूर्ति महामाया देवी मंदिर भी है। मंदिर की मजबूत चहारदीवारी स्थापत्य कला को रेखांकित करती है। धमधा में किले के दूसरी ओर चौकड़िया तालाब के तट पर प्राचीन चतुर्भुज, विष्णु और शिव मंदिर भी सैकड़ों साल पुराने है।
धमधा कभी छत्तीसगढ़ का औद्योगिक नगर भी था। यहां बड़े पैमाने पर बर्तन बनाने का कुटीर उद्योग था। ताम्रकरों की पूरी बस्ती तमेरपारा बसी थी जहां हर घर में बर्तन बनाए जाते है। बाद में बड़े-कारखानों में स्टील के बर्तन बनने शुरु हुए तो परंपरागत पीतल, कांसा और मिश्रित धातु के बर्तन प्रचलन से बाहर हो गये। यहां रहने वाले विष्णु प्रसाद ताम्रकार बताते हैं कि धमधा की मिट्टी अद्भूत है। पास में ही स्थित जाताघर्रा में बड़े पैमाने पर टमाटर की फसल होती है। अखबारों में हर साल किसी किसान के लखपति बनने की खबर छपती ही है।
स्वर्णिम इतिहास को समेटे हूए धमधा में छह आगर, छह कोरी तालाब है यानी कुल 126 सरोवर। कहते हैं कि इन तालाबों में सोने के कछुए डाले गये हैं जिसकी वजह से तालाब कभी सूखते नहीं। तालाबों के तट पर रहने वाले ताम्रकारों के बीच एक मान्यता यह भी है कि सांप उन्हें काटता नहीं है इसलिए ताम्रकार कभी सांप को नहीं मारते हैं।
बहरहाल धमधा छत्तीसगढ़ का कभी नूर था लेकिन आज प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया है । दूर्गजिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर इस नगर में बसे ताम्रकार काम की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। हां कुकुर चब्बा के अनोखे इलाज के लिए यहां आने वाले लोगों का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
6 comments:
इतनी उपयोगी जानकारी देने के लिये धन्यवाद तपेश जी।
भारत वर्ष ऐसी चिकित्सा पद्धतियों से भरा हुआ है, जरूरत है तो सिर्फ़ ऐसी बातों के छोटे शहरों, कस्बों की गलियों से बाहर लाने की। अगर सभी लोग ऐसी उपयोगी (प्रामाणिक भी) जानकारियां ब्लोग्स पर लाने लग जायें तो वास्तव में हिन्दी ब्लोगिंग की सार्थकता है।
आशा है कि ऐसी और भी जानकारियां यहां मिलती रहेंगी।
आपने यह जानकारी यहां उपलब्ध करवाई यह काबिले तारीफ़ बात है!
शुक्रिया!
तपेश भैया शायद आपो मन कुकुर चाबे रिहिश होही तभेच तो आप मन कुकुर चाब के बारे में इतना असन लिखेव वैसे आपके जानकारी बहुत सुघ्घर लागिस औ एकर से जनता जनार्दन के भारी परोपकार होही वैसे गांव गांव में कुकुर के आबादी बाढ़े हे
Free Treatment Bite Of Dog, Snake, Monkey, Horse, Cat, Fox, Froge Etc.New & Old BiteContect & Whatssap No.(Baqar Bijnori+919917813838)
हमारे यहाँ साँप, बिच्छु, कुत्ता, बन्दर, गीदड़, छिपकली, मधुमख्खी, बिल्ली, नेवला, सियार, रीछ लँगूर, गिलहरी, घोड़ा, मेंढक, ऊदबिलाव, लोमड़ी आदि जैसे के नये वे पुराने से पुराने काटने का एकदम मुफ़्त में ईलाज किया जाता है। चाहे ये ज़हरीले जानवर किसी इन्सान या किसी पालतू जानवर जैसे- बकरी, घोड़ा, भैंस, गाये, आदि के ही कियों ने काटे। हम लोग मरीज़ की कमर पर काशी की थाली पढ़कर लगाते हें। अगर ज़ेहर होता हे तो थाली चुम्बक की तरह मरीज़ की कमर पर चिपक जाती है और तब तक नहीँ हटती जब तक मरीज़ क जिस्म से सारा ज़हर ना चूस ले। ये हमारा गारन्टी का 100% पेटेन्ट ईलाज है। मरीज़ को किसी तरह की कोई परेशानी नहीँ होती और मरीज़ आसानी से एक बार में ही पूरी तरह से ठीक हो जाता है। दोबारा आने की ज़रूरत नहीँ होती। अगर आपको या आपके किसी पालतू जानवर को इनमें से कोई भी ज़हरीली चीज़ काट ले तो आप बिना झिझक और बिना डरे हमारे पास चले आयें। किसी बाबा या झाड़-फूँकवाले के चक्कर में आकर अपना वक़्त और पैसा बर्बाद ना करें। हमसे आकर मिलें या हमें फोन पर बतायें इंशाल्लाह आपकी इस तरह की परेशानी का एकदम हल और फ्री ईलाज किया जायेगा। चाहे आप किसी भी राज्य में रहते हों या कहीँ भी काम करते हों हमारे यहाँ आप तक डाक दुवारा या कोरियर से थाली भेजने की भी सुविधा है। आपको केवल थाली और कोरियर का ही पैसा देना होगा बाक़ी किसी तरह का और कोई पैसा नहीँ देना होगा। बस आप हमें अपना पुरा पता बता दीजिये। थाली आपको भेज दी जायेगी।
नोट- हमारे यहाँ कुत्ते के काटने पर जो हड़क उठती हे उसके उठने से पहले पहले ही ईलाज किया जाता है। बाद में नहीँ। यानी रैबीज से पहले-पहले ।
हमारा व्हाट्सअप और कॉन्टेक्ट नंबर ये है। +919917813838
पता है--बाक़र हुसैन अंसारी ग्राम बग़दाद अन्सार पोस्ट हबीब वाला तहसील धामपुर ज़िला बिजनोर यूपी पिन कोड 246761
और थाली मंगाने के लिये पैसा भेजने को बैंक खाता नंबर ये है।
Baqar Hussain S% Shaukat Ali A/C No. 30999383731 State Bank Of india Branch Dhampur District Bijnor Uttarpradesh IFSC COD- SBINO000633
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