Saturday, November 25, 2006

केवड़े का वन यानी कबीरधाम का जुनवानी लिमो


शिल्प और सौंदर्य के साझेपन के लिए प्रसिद्ध भोरमदेव मंदिर के अलावा कबीरधाम जिले में केवड़े की सुवासित सुगंध से युक्त दो धार्मिक स्थल और हैं। छत्तीसगढ़ के बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि जिला मुख्यालय कबीरधाम से मात्र छह किलोमीटर दूर “जुनवानी लिमो” में नर्मदा कुंड़ केवड़े के वृक्षों से आच्छदित है । कुंड के चारों ओर केवड़े के वृक्ष से जहां यह स्थल रमणीक हो जाता है वहीं भीनी-भीनी खूशबू अलग ही आनंद का अहसास कराती है। कबीरधाम स्थानीय पुराना नाम कवर्धा के पास स्थित इस ग्राम को शहर से जोड़ने के लिए नवीन बाजार से एक सड़क बनाई जा रही है जिससे यह पर्यटन स्थल सीधा शहर से जुड जायेगा और इसकी दूरी होगी मात्र तीन किलोमीटर ।

इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी खासी रूचि ली है। यह स्थान उनके पैतृक गाँव ठाठापुर और कवर्धा के बीच में स्थित है। बताते हैं कि तब डॉ. रमन स्कूटर से अपने गाँव ठाठापुर जाया करते थे तब वे यहाँ शिवमंदिर में पूजा-अर्चना कर नर्मदा कुंड को विकसित किए जाने की बात कहा करते थे। अब अवसर मिलने पर जनवानी लिमा में “हमारा छत्तीसगढ़” योजना के तहत पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग आधारभूत विकास कार्य कर रहा है ताकि वह स्थानीय व बाहरी लोगों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र बन सके।

कबीरधाम जिले में जुनवानी लिमो के अलावा झिरना ग्राम में भी केवड़े से सुगंधित वृक्षों की बड़ी तादाद है। कवर्धा-रायपुर मार्ग पर कवर्धा से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित झिरना में पवित्र नर्मदा कुंड के चारों ओर केवड़े के ऊँचे-ऊँचे वृक्ष हैं। यहाँ पर पर्यटन विभाग ने सौंदर्यीकरण का कार्य बीते वर्ष पूर्ण करवाया है। लेकिन ठेकेदार की करतूत से झिरना नर्मदा कुंड का पानी सूख गया है।

कबीरधाम जिले में भोरमदेव जैसा विश्र्वप्रसिद्ध स्थल है वहीं कई ऐसे स्थल है यहाँ उत्खनन किए जाने पर वैभव का पता चल सकता है। ऐसा ही एक स्थान कंकालीन बैजलपुर प्रकाश में आया है। कवर्धा से करीब 37 किलोमीटर दूर कंकालीन बैजलपुर में प्राचीन प्रस्तर प्रतिमाएं पूर्व में ही प्रस्थापित थी। हाल ही में इसकी बावड़ी से उमा-महेश्वर की प्राचीन कलात्मक प्रतिमा प्राप्त हुई है, वहीं यहाँ स्थित टीले से मंदिर के अवशेष उत्खनित हुए हैं।

कंकालीन-बैजलपुर से एक किलोमीटर दूर बफेला-देवसरा में आठवी शताब्दी की जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान की काले ग्रेनाइट की कलात्मक प्रतिमा भी उत्खनन में प्राप्त हुई हैं जो पंडरिया के जैन मंदिर में प्रस्थापित है। इस प्रतिमा को स्थानीय बैगा आदिवासी मंत्रित मानते हैं और इसकी पूजा भी करते हैं।

इसी कबीरधाम जिले में शहर से 32 किलोमीटर दूर कुंवर अछरिया के संदर्भ में भी बहुत सी किनदंतियां हैं। कवर्धा से 25 किलोमीटर दूर पंडरिया मार्ग पर जलेश्वर महादेव खरहट्टा ग्राम में स्थित है। फोक नदी पर चट्टानों के बीच प्राकृतिक शिवलिंग से यह स्थान जिले का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है और जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर दूर भोरमदेव में छत्तीसगढ़ मंदिर वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। 11 वी सदी में पाषणों का यह शिल्प सौंदर्य और तंत्र-मंत्र का जंतर-मंतर है। कुल मिलाकर कबीरधाम जिले की विरासत अतीत के साथ ही वर्तमान को भी सुगंधित कर रही है।

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