40,000 करोड़ रुपए हम हर साल बीमारियों पर खर्च कर रहे हैं। यकीनन रोग बिगड़ते हुए पर्यावरण से उत्पन्न हो रहे हैं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू देखें, दूषित वायु से हर वषज्ञ 56,000 से ज्यादा लोग अकाल मौत मारे जा रहे हैं। जहर अंश युक्त खाद्य पदार्थ से 20,000 मृत्यु हर साल भारत में होती है। ये कुछ आंकड़़े दो-तीन वर्ष पुराने हैं यानी वर्तमान में इससे ज्यादा चिंताजनक स्थितियां हैं। जहरीली हवा, पानी, मिट्टïी और खाद्य पदार्थ से नई-नई बीमारियां पनप रही हैं। अब तक हमने मलेरिया का नाम सुना था लेकिन मलेरिया का ही भयानक प्रतिबिंब डेंगू का प्रादूर्भाव हो चुका है। हेपेटाइटिस बी, सी डी, गेस्टो-इन्टाट्रिक्स, ब्रोकांटिस जैसी नई-नई बीमारियां चलन में है। एलर्जी, पेट की बीमारी, श्वांस रोग, घातक स्तर तक पहुंच गये हैं। इस संदर्भ में रायपुर शहर के पर्यावरण और रोग को देखें तो शहर में यकायक चिकित्सकों की संख्या आशचर्यजनक ढंग से बढ़ी है। करीब 540 निजी एलोपैथिक चिकित्सक और इससे दुगने होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व आर.एम.पी. डाक्टरों की संख्या से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस कदर शहरवासी बीमारी हैं। बावजूद इसके हम नियति मानकर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। दोष औसत आदमी का नहीं, सरकारी एजेंसियों का है। जिन्होंने पर्यावरण पर हल्ला तो मचाया पर आम आदमी को ढंग से नहीं बताया कि प्रदूषण क्या है? उसकी रोकथाम करना क्यों जरुरी है? साथ ही पर्यावरण के मुद्दे पर चिंता जताना फैशन बन गया है और इस पर बातचीत करना स्टेटस सिंबल। दुर्भाग्य यह रहा कि कथित पर्यावरण जानकारों ने स्टेटस बनाए रखने के लिए आम आदमी को कभी ढंग से बताया नहीं कि पर्यावरण और प्रदूषण क्या है? हालांकि वे जनभागीदारी का ढिंढोरा पीटते रहे। इसलिए जो थोड़े बहुत उपाय हुए वह आंशिक सफल रहे। शहर में वृक्षारोपण की योजनाबद्ध शुरुआत हार्टिकल्चर सोसायटी ने की और बाद में पर्यावरण कोष, पूर्व संभागायुक्त जे.एल. बोस व जिलाधीश डी.पी. तिवारी की जुगल-जोड़ी ने बनाया लेकिन दोनों संस्थाओं के वृक्षारोपण शत-प्रतिशत सफल रहे हो, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन तीन आदमियों ने पचपेढ़ी नाका से लेकर कालीबाड़ी चौक तक 106 वृक्षों का शत-प्रतिशत रोपण किया। भूपेंदर सिंह पिन्नी, किरोड़ीमल अग्रवाल और प्रशांत पारख ने तीन साल पहले टिकरापारा मुख्य मार्ग में तालाब के सामने सौ वृक्ष रोपित किए उनमें से एख भी वृक्ष मरा नहीं। कुल 206 वृक्षों की सफलता आम आदमियों का ही प्रयास है। इन दोनों संस्थाओं ने आम-आदमी को कभी भी वृक्षारोपण के लाभ नहीं बताएं, शायद इसीलिए जनता इनसे जुड़ी भी नहीं। दरअसल बिगड़ता हुआ पर्यावरण मानव जाति के समक्ष घोर संकट पैदा कर रहा है, अत: उसे संवारना सबका नैतिक दायित्व बन जाता है। पर्यावरण कुछ संगठनों और सरकार के भरोसे सुधर भी नहीं सकता, जब तक प्रत्येक नागरिक भी इसमें भागादीर नहीं होगी सुधार के कोई भी उपाय सफल नहीं हो सकते। आम आदमी को पर्यावरण, प्रदूषण की जानकारी के साथ ही उनके स्वास्थ्य में होने वाले नुकसान व प्राकृतिक संसाधनों की कमी के खतरों से अवगत करवाने लोकमान्य सदभावना समिति ने यह प्रयास किया है। इसके लिए हमें गांधी शांति प्रतिष्ठान के पर्यावरण कक्ष और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के राष्टï्रीय पर्यावरण जागरुकता अभियान से प्रेरणा मिली। इस आयोजन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के उप संचालक हीरामन सिंह ठाकुर व जनसंपर्क विभाग के उपसंचालक सुभाष मिश्रा ने सहयोग प्रदान कर हौसला बढ़ाया, इन सबके प्रति आभार।
Saturday, February 7, 2009
प्रदूषण से हानि, पर्यावरण संरक्षण से लाभ बताना होगा
40,000 करोड़ रुपए हम हर साल बीमारियों पर खर्च कर रहे हैं। यकीनन रोग बिगड़ते हुए पर्यावरण से उत्पन्न हो रहे हैं। यह एक पहलू है। दूसरा पहलू देखें, दूषित वायु से हर वषज्ञ 56,000 से ज्यादा लोग अकाल मौत मारे जा रहे हैं। जहर अंश युक्त खाद्य पदार्थ से 20,000 मृत्यु हर साल भारत में होती है। ये कुछ आंकड़़े दो-तीन वर्ष पुराने हैं यानी वर्तमान में इससे ज्यादा चिंताजनक स्थितियां हैं। जहरीली हवा, पानी, मिट्टïी और खाद्य पदार्थ से नई-नई बीमारियां पनप रही हैं। अब तक हमने मलेरिया का नाम सुना था लेकिन मलेरिया का ही भयानक प्रतिबिंब डेंगू का प्रादूर्भाव हो चुका है। हेपेटाइटिस बी, सी डी, गेस्टो-इन्टाट्रिक्स, ब्रोकांटिस जैसी नई-नई बीमारियां चलन में है। एलर्जी, पेट की बीमारी, श्वांस रोग, घातक स्तर तक पहुंच गये हैं। इस संदर्भ में रायपुर शहर के पर्यावरण और रोग को देखें तो शहर में यकायक चिकित्सकों की संख्या आशचर्यजनक ढंग से बढ़ी है। करीब 540 निजी एलोपैथिक चिकित्सक और इससे दुगने होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व आर.एम.पी. डाक्टरों की संख्या से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस कदर शहरवासी बीमारी हैं। बावजूद इसके हम नियति मानकर हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। दोष औसत आदमी का नहीं, सरकारी एजेंसियों का है। जिन्होंने पर्यावरण पर हल्ला तो मचाया पर आम आदमी को ढंग से नहीं बताया कि प्रदूषण क्या है? उसकी रोकथाम करना क्यों जरुरी है? साथ ही पर्यावरण के मुद्दे पर चिंता जताना फैशन बन गया है और इस पर बातचीत करना स्टेटस सिंबल। दुर्भाग्य यह रहा कि कथित पर्यावरण जानकारों ने स्टेटस बनाए रखने के लिए आम आदमी को कभी ढंग से बताया नहीं कि पर्यावरण और प्रदूषण क्या है? हालांकि वे जनभागीदारी का ढिंढोरा पीटते रहे। इसलिए जो थोड़े बहुत उपाय हुए वह आंशिक सफल रहे। शहर में वृक्षारोपण की योजनाबद्ध शुरुआत हार्टिकल्चर सोसायटी ने की और बाद में पर्यावरण कोष, पूर्व संभागायुक्त जे.एल. बोस व जिलाधीश डी.पी. तिवारी की जुगल-जोड़ी ने बनाया लेकिन दोनों संस्थाओं के वृक्षारोपण शत-प्रतिशत सफल रहे हो, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन तीन आदमियों ने पचपेढ़ी नाका से लेकर कालीबाड़ी चौक तक 106 वृक्षों का शत-प्रतिशत रोपण किया। भूपेंदर सिंह पिन्नी, किरोड़ीमल अग्रवाल और प्रशांत पारख ने तीन साल पहले टिकरापारा मुख्य मार्ग में तालाब के सामने सौ वृक्ष रोपित किए उनमें से एख भी वृक्ष मरा नहीं। कुल 206 वृक्षों की सफलता आम आदमियों का ही प्रयास है। इन दोनों संस्थाओं ने आम-आदमी को कभी भी वृक्षारोपण के लाभ नहीं बताएं, शायद इसीलिए जनता इनसे जुड़ी भी नहीं। दरअसल बिगड़ता हुआ पर्यावरण मानव जाति के समक्ष घोर संकट पैदा कर रहा है, अत: उसे संवारना सबका नैतिक दायित्व बन जाता है। पर्यावरण कुछ संगठनों और सरकार के भरोसे सुधर भी नहीं सकता, जब तक प्रत्येक नागरिक भी इसमें भागादीर नहीं होगी सुधार के कोई भी उपाय सफल नहीं हो सकते। आम आदमी को पर्यावरण, प्रदूषण की जानकारी के साथ ही उनके स्वास्थ्य में होने वाले नुकसान व प्राकृतिक संसाधनों की कमी के खतरों से अवगत करवाने लोकमान्य सदभावना समिति ने यह प्रयास किया है। इसके लिए हमें गांधी शांति प्रतिष्ठान के पर्यावरण कक्ष और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के राष्टï्रीय पर्यावरण जागरुकता अभियान से प्रेरणा मिली। इस आयोजन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग के उप संचालक हीरामन सिंह ठाकुर व जनसंपर्क विभाग के उपसंचालक सुभाष मिश्रा ने सहयोग प्रदान कर हौसला बढ़ाया, इन सबके प्रति आभार।
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1 comment:
thanks जयप्रकाश मानस......it was very useful for me...
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