Saturday, February 7, 2009

रमन सिंह कोईतोर ना पेन लेहका माने आंदूर


रायपुर। गोंड़ी भाषा में जब अंतागढ़ के आदिवासी ये कहतें है कि रमन रमन सिंह कोई तोर ना पेन लेहका माने आंदूर-तो मन भावुक हो जाता है कि सच में आदिवासी मन निर्मल और सरल होता है। यह बात अंतागढ़ विधानसभा क्षेत्र से रोमांचक मुकाबले में विजय हुए विधायक विक्रम उसेंड़ी बतातें है वह खुद भी भाव विभोर हो जाते है। चुनाव के दौरान बाते खट्टे-मीठे लम्हों को याद करते हुए श्री उसेंड़ी कहते है कि बस्तर की 12 ०में से 11 सीटों पर क मल खिलने का श्रेय अगर किसी को है तो वो डॉ रमन सिंह को है। मुख्यमंत्री की सरलता सज्जनता, नीयत और नीति साफ रही जिस्से बस्तर के लोगो का मन जीत लिया इसलिए तो वे लोग अपनी भाषा में उन्हें अपना मसीहा मानते है।
तीसरी दफा विधायक चुने गए श्री उसेड़ी बस्तर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रहे और शिक्षा मंत्री का दायित्व भी निभा चुके है। इस बार सबसे कम अंतर 109 वोटों से चुनाव जीतने का रिकार्ड उनके नाम पर है। छत्तीसगढ़ वाच - से विशेष बातचीत करते हुए श्री उसेंड़ी ने कहा कि बस्तर अंचल में इस ऐतहासिक सफलता के पीछे कई कारण रहें। सर्वप्रथम गरीबों को तीन रुपए किलो में चांवल देने का खाद्यन्न साहयता योजना तो रही ही साथ में 25 पैसे में अमृत नमक, मुफ्त में बैल जोड़ी, पहले छ: प्रतिशत ब्याज की दर से कृषि ऋण, पाँच हार्स पॉवर तक किसानों को मुफ्त में बिजली आठवीं तक बालक, बालिकाओं को मुफ्त में किताब, तेंदूपत्ता बोनस चार गुना होना वन वासियों को नि: शुल्क चरण पादुका के साथ ही जन श्री बीमा योजना प्रमुख थी। इतनी सारी कल्याणकारी योजनाओं ने आदिवासियों के जीवन स्तर को ऊचा करने के साथ ही उनका दिल भी जीत लिया है। श्री उसेंडी बताते है कि बस्तर विकास प्राधिकरण का गठन ऐतिहासिक कदम था। इसमें विकास कार्यो की लंबी प्रक्रिया को कम करके सीधे स्वीकृति और राशि आंबटन ने सच में बस्तर की तस्वीर बदल दी। वो याद करते है कि हर तीन माह में होने वाली बस्तर विकास प्राधिकरण की बैठक में अध्यक्ष के तौर पर मुख्यमंत्री बड़ी गंभीरता से समस्याओं पर मनन कर तत्काल स्वीकृति प्रदान करते थे । इस्से सडक़, पानी, बिजली, स्वास्थ्य, के साथ ही पैसा उपलब्ध होने के साथ ही निर्माण भी शुरू हो जाता था। प्राधिकरण ने आदिवासी अंचल के विकास को धरातल पर उतारा और उन्हे अमली जामा पहनाया। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के विकास कार्यो की सराहना विपक्षी दल कांग्रेस के लोग भी करते है और इसमें कोई दो राय नहीं कीबस्तर की तस्वीर डॉ रमन सिंह ने ही बदली है।
वे याद करते हुए बतातें है कि आजादी के 61 वर्ष बाद की बस्तर के कोई गाँव में जब बिजली पानी की समस्या थी। ऐसे ही पंखाजूर के पी.वी.-61 नाम के गाँव में जब 8.8.2008 के एतिहासिक दिन बिजली पहुंची तो समाचार पत्रों में यहीं प्रकाशित हुआ कि - आजादी की 61वीं वर्षगांठ पर 61 गांँव पर बिजल।- इस तरह वे बतातें है कि कई गाँव में पीने का पानी की गंभीर समस्या थी। हेंडपंप की फास्ट रिंग मशीन पहाड़ों को पार करके गांवों में नहीं पहुँच पाती तब विभागीय इंजीनयरों की जानकारी पर ट्रेक्टर माउंटेन मशीन हैदराबाद से खरीदी गई और जब पीवी-63 नामक गाँवों में खुदाई की गई तो वहाँ के निवासियों के खुशी अपार थी। बाद में इस मशीन से कई गाँवों की समस्या का अंत हुआ।
श्री उसेंडी जी बताते है कि सुदूर बस्तर के अंतागढ़ में उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज के लिए ही आईटीआई और पंखाजूर में स्टेडियम निर्माण ने बहुत कुछ ऊंचाईयाँ दी है। बस्तर के विकास में विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज मील का पत्थर साबित होगें और आदिवासियों के जीवन स्तर को कैसा ऊंचा उठायेंगे। बस्तर में सिचाई की सुविधा का आभाव है। इस कमी को दूर करने का प्रयास होगा और अब दूसरे कार्यकाल में आदिवासियों के आर्थिक विकास की नई योजनाओं से उनके रहन सहन में व्यापक बदलाव की उम्मीद है। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के प्रति बस्तर की जनता ने जो विश्वास व्यक्त किया है। उसका प्रतिफल अवश्य मिलेगा और वे अब और ज्यादा ध्यान देंगे कि किस तरह बस्तर के लोगों के विश्वास पर और ज्यादा कार्य कर सकें। विश्वास है कि डॉ रमन सिंह ने भोले-भाले आदिवासियों के लिए बेहतर योजना बनाएंगे।

बीएससी तक पढ़े लिखे हैं विक्रम उसेंडी -विज्ञान स्नातक विक्रम उसेंडी पूर्व में शिक्षक भी रह चुके हैं 1987 में शिक्षक संघ के सचिव से सार्वजनिक जीवन में पदार्पण करने वाले श्री उसेंडी ने सन 1993 में पहला विधानसभा चुनाव नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र से लड़ा और बहुत कम मार्जिन 316 वोट से चुनाव जीते। सन 1998 में वे बहुत कम वोट 614 से चुनाव हार गए। लेकिन 2003 में वे बड़े अंतर 8814 मतों से विजयी हुए तो इस बार वे सबसे कम मतों के मार्जिन 109 वोटों से जीत का सेहरा पहन सके। दो पुत्र मोहनिस और श्रेयांस के पिता श्री उसेंडी की पत्नी शिक्षिका है और उनकी रूचि खेल में बहुत ज्यादा है। 1997-98 में क्यूबा के अंतरराष्टï्रीय युवा सम्मेलन में प्रतिनिधित्व करना उनके लिए यादगार है। खास बात ये है कि चारों बार उनके खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार उनके प्रतिद्वंद्वी थे।

हेलीकाप्टर के नहीं आने से हार हुई थी 1998 में - हाल में संपन्न हुए चुनाव में श्री उसेंडी को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। पहले टीवी चैनलों में लगातार यह दिखा दिया था कि मंतूराम पवार चुनाव जीत गए जबकि ऐसा नहीं था वे बताते हैं कि श्री पवार ग्यारहवें राऊंड में करीब 500 वोटों की लीड मिलने के बाद फूलमाला पहनकर निकले तो चैनल वालों ने समझ लिया कि वे जीत गए और खबर फैल गई जबकि बाद में चार राउंड की और गणना हुई। वे बताते हैं कि 1998 में रमेश बैस हेलीकाप्टर से नारायणपुर में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचने वाले थे लेकिन नहीं आए। इसके चलते हेलीकाप्टर देखने से वंचित, आदिवासियों ने उन्हें झूठा समझकर वोट नहीं दिया और मात्र 634 मतों से हार गए। इस बार भी 25000 की भीड़ नवजोत सिंह सिद्धू को देखने इक_ïी हुई लेकिन वे नहीं आए इतना ही नहीं अगले दिन का कार्यक्रम बना तो फिर नहीं आए। इस वजह से उन्हें ताने सुनने पड़ गए और कार्यकर्ता बहुत हतोत्साहित हो गए थे। चिंता जताई लेकिन वे अंतत: जीत गए पर वे अगली बार हेलीकाप्टर से आने वाले नेताओं की सभा से बचना चाहिए ।

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